मैं ,मांडवी ,आज आप सबके साथ अपने कुछ पलों को बांटने आयी हूँ |क्या कहा ? आप मुझे नहीं पहचानते !पहचानना तो दूर जानते भी नहीं !यही मेरी उलझन है |मेरे नाम से तो अधिकतर लोग मुझे नहीं जानते |शायद नीवं की ईटों पर कोई ध्यान देता ही नहीं |वो दिखाई भी नहीं देती और ध्यानाकर्षण भी नहीं कर सकती,ये उनकी मजबूरी है और नियति भी |
अब जिस परिचय से आप को तुरंत याद आ जाएगा वही बताती हूँ | मैं ,मर्यादा-पुरुषोत्तम अयोध्या के नरेश राम के छोटे भाई भरत की पत्नी मांडवी हूँ |अब तो आप सब को याद आ गयी होऊँगी |जिसका आप नाम तक न याद रख पाए ,क्या आप उसकी बातें सुनना चाहेंगे ?
हम चारों बहनों -सीता दीदी ,मैं ,उर्मिला और श्रुतिकीर्ति -ने पूरा समय साथ बिताया ,एक ही से संस्कार भी पाए |शादी भी हमारी साथ-साथ हुई एक ही राजपरिवार में ,परन्तु किस्मत शायद हम चारों की सर्वथा अलग थी | हमारी शादी का हेतु दीदी ही बनी थीं | स्वयंवर में सीता दीदी ने श्री राम को चुना |उनकी शादी के समय श्री राम के छोटे भाइयों से बाकी की हम तीनों बहनों की शादी हुई ,मेरी भरत से ,उर्मिला की लक्ष्मण से और श्रुतिकीर्ति की सबसे छोटे शत्रुघ्न से | हम प्रसन्नमना अयोध्या आये | शुरू का कुछ समय हमने तीनो माताओं के दुलार में बहुत अच्छा बिताया | दिक्कत तो तब आनी शुरू हुई जब मंथरा के बहकावे में आ कर मां कैकेयी ने भैया राम को वनवास दिया | सीता राम और लक्ष्मण के साथ वन को चली गयीं ,हम तीनों बहनों को माताओं का ध्यान रखने की आज्ञा दे कर अयोध्या में ही रोक गयीं |
हमने अयोध्या में रुक कर कर्तव्यों का निर्वहन किया | भरत ने अयोध्या के राज्यभार का वहन भी किया पर सिर्फ राम के प्रतिनिधि के रूप में |भरत ने तो अयोध्या में ही वनवासी का सा जीवन बिताया ,जिसका मुझे मान है !भैय्या राम के वापस आ जाने पर ,उनको राज्य सौंप कर भरत मुक्तमना हो पाए थे ,अन्यथा माता कैकेयी के पाप कर्म का बोझ अपनी आत्मा पर वहन किये अशांत ही रहे |इस पूरे समय में शत्रुघ्न भरत की परछाईं सदृश बन गए थे ,जैसे लक्ष्मण वन में राम को अनुसरण करते रहे |
इन चारों भाइयों ने अपने अभिन्न सम्बन्धों के द्वारा हर मुश्किल समय का सामना किया | पर वास्तव में इन की एकता का कारण माता सुमित्रा की परिपक्व सोच थी | उन्होंने अपने दोनों पुत्रों -लक्ष्मण और शत्रुघ्न -को राम और भरत के साथ कर के उन्हें अकेलेपन से बचा लिया और संतुलन बनाए रखा |इतना ही नहीं अयोध्या में भी माता कौशल्या के साथ कवच सदृश रहीं |
अगर घर में माता संतुलन बनाए रखे तो कितनी भी विषम परिस्थिति हो ,परिवार कभी भी बिखर नहीं सकता | कठिन परिस्थितियाँ सभी सदस्यों को हर स्तर पर और भी दृढ बना जाती हैं ...........
-निवेदिता
घर में संतुलन बनाना तो गृहणी का ही कार्य है।
जवाब देंहटाएंसंतुलन बनाये रखने के लिए हर व्यक्ति का प्रयास उचित है , मगर गृहिणी की भूमिका सर्वोपरि है ...
जवाब देंहटाएंमांडवी के माध्यम से सार्थक सन्देश दिया !
एक सजिव चित्रण, लगा जैसे मांडवी सामने खड़ी होकर बोल रही हो, और माता के धर संभालने की बात सौ प्रतिशत सही।
जवाब देंहटाएंसच मुझे तो पता ही नहीं था के भारत और शत्रुघ्न की पत्नियों के नाम क्या हैं या फिर उनकी शादी भी कभी हुई है...रामायण में सिर्फ राम और उसके आस पास बसने वाले चरित्रों की ही कथा है बाकि सब गौण हैं...आपकी पोस्ट से ही ये जानकारी मिली...त्याग चारों भाइयों और पत्नियों ने बराबर का किया है...
जवाब देंहटाएंनीरज
निवेदिता जी गोस्वामी तुलसीदास ने राम सीता और लक्ष्मण के चरित्र को अधिक उभारा बाकी चरित्र दब गए लेकिन आपको बधाई कि आपने मांडवी को याद किया |लक्ष्मण की पत्नी का भी बहुत योगदान था |आभार
जवाब देंहटाएंमाडवी को शब्द देकर आपने एक नये पात्र के मन को खोलने का प्रयास किया है । सीता के आगे बाकी बहनों का चरित्र उभरा ही नही । उर्मिला के त्याग की महती तो फिर भी गाई गई है पर मांडवी और श्रृतिकीर्ती का तो नाम ही नही आता विवाह के बाद । पणजी में जरूर मांडवी नदी है खूब बडे पात्र वाली सुंदर पानी से भरी ।
जवाब देंहटाएंआपकी मौलिक रचनात्मता का स्वागत है ....शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंalaukik rachna
जवाब देंहटाएंमांडवी के चरित्र को लेकर रची सार्थक प्रस्तुति..... बहुत सुंदर प्रासंगिक सन्देश
जवाब देंहटाएंघर का संतुलन गृहणी से ही बनता है...
जवाब देंहटाएंमांडवी के माध्यम से राम कथा के कुछ पहलूओं को छुआ है आपने ...सार्थक संदेश भी दिया है ...
जवाब देंहटाएंसम्पूर्ण रखुकुल त्याग और मर्यादा की अद्भुत मिसाल है
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