ओ मेरे अजनबी मन !
आज आयी हूँ लेने ...
तुमसे कुछ अनसुलझे
सवालों के जवाब ............
क्यों रखा सिर्फ अपने ही पास
ये सब नकारने का अधिकार !
तुम्हारे लिए भी सीमा-रेखा सी
कुछ तो लकीर होनी चाहिए .......
तुम्हे अपनी सागर सी
विशालता का है अभिमान
क्यों भूल जाते हो .......कि तुम
बने हो मुझ जैसी नन्हीं बूंदों से ......
सोचो क्या होगा तुम्हारा जब ,
हम नकार दे अस्तित्वहीन होने से .....
इस अभिमान को पोषित भी किया हमीं ने
अपनी लघुता खो तुम्हे नि:स्सीम किया !
ज़रा सोचो तो कैसे बने महान ..............
तुम्हारी चमक-दमक के साये में ,
मेरी सादगी कुछ वीरान सी दिखती ........
पर क्या करूँ ....इस सफेदी से ही ....
लिए तुमने रंग उधार .........
आज आयी हूँ लेने वापस
तुम्हारा ............मुझको ..................
नफ़रत करने का अधिकार..............
अब करते रहना अज-विलाप ................
-निवेदिता
भावपूर्ण रचना. अच्छे शब्द.
जवाब देंहटाएंदुनाली पर
बेटे की नज़र में क्रूर था लादेन
भावनाओं से ओत-प्रोत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंभावनाओं से ओत-प्रोत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंविशालता और सूक्ष्मता के बीच सुप्त होती जिन्दगी।
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील रचना , कुछ प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई , सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंतुम्हारी चमक-दमक के साये में ,
जवाब देंहटाएंमेरी सादगी कुछ वीरान सी दिखती ........
पर क्या करूँ ....इस सफेदी से ही ....
लिए तुमने रंग उधार .........
आज आयी हूँ लेने वापस ... gahri rachna, mann mastishk mein utarti
संवेदनशील सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंजीवन की जद्दोज़हद के प्रभावित करते भाव... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम निवेदिता जी बहुत ही सुंदर शब्द रचना /कविता के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएं.इस सफेदी से ही ...
जवाब देंहटाएंलिए तुमने रंग उधार
आज आयी हूँ लेने वापस ...
सुंदर रचना के लिए साधुवाद!
बहुत सुंदर कविता। आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया। आना सार्थक हुआ। अब आना जाना बना रहेगा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना... बहुत बहुत बधाई ।।।।
जवाब देंहटाएंभावनाओं के पाश में बंधी खुद को आज़ाद करने के प्रयास में तल्लीन पर कुछ न कर पाने में असमर्थ |
जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना |
happy mothers day dost :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाव वर्णित किया है आपने...सचित्र प्रस्तुति के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंहर बड़ी चीज़ छोटे को भूल जाती है ... बहुत लाजवाब पंक्तियाँ हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता निवेदिता जी आपको नमन ,बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियों में आपका दृढ़ निश्चय दिख रहा है , जो अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबधाई निवेदिता जी।