जीवन की ऊष्मा से
भर जाते मन प्राण,
जब भी लहरा जाते
यादों की करते झंकार,
हाथो में ले कर हाथ
श्वासों से लिखा
तुमने बस प्यार ...........
धूप-छाँव सी बसर
होती जाती ज़िन्दगी,
कभी तीखी कभी कसैली
उलझती सुलझन सी,
पल्लवित सुरभित सुमन सी
पा कर बादल सी छाँव
जीने काबिल हो जाती है
बहुत बढ़िया लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
Beautiful creation Nivedita ji.
जवाब देंहटाएंprem ke aadhyatmik bhawon ko ubharti rachna
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता निवेदिता जी
जवाब देंहटाएंprem ki sunder abhivyakti
जवाब देंहटाएंyahi to hai prem!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंस्पर्श के माध्यम से न जाने कितने भाव संचारित हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
ACHHA LAGA MAM.
जवाब देंहटाएंइस कविता को दो दिन पहले पोस्ट किया था ,ब्लागर की समस्या की वजह से पोस्ट गायब हो गयी थी ...अब वापस मिलने पर टिप्पणियां गायब हो गयी हैं .....
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंNivedita ji , you can retrieve the comments from your mail box and re-paste them here again .
Beautiful creation !
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