शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

अपना साथ ................

मैंने रिश्तों को सहेज रखा है ,नगीने की तरह 
पर तुम शायद ,अंगूठी कहीं रख कर भूल गए 


अपना साथ तो है अंगूठी जैसा ,
साथ रहते हैं तब उँगलियों में ,
साथ-साथ सजे रहते हैं ...........
जब कहीं चले जाते हो छोड़ कर ,
अपने होने के एहसास दे जाते हो ,
उँगलियों में निशाँ जैसे ............

अपना साथ तो शुभ शगुन सा 
हाँ ! ये भी सच है कि छोड़ जाता है 
कभी-कहीं कुछ निशां सा .........
पर वो निशां भी तो है प्यारा 
मेहंदी सा शगुन भरा...............


ये मीना-नग-नगीने तो 
दिखावे है या शायद झूठे हैं
एक सीधे-सच्चे धागे में 
पिरोये हुए काले से मोती
यही तो सीधे-सच्चे हैं  
चश्मे-बद-दूर !!!!!!
               -निवेदिता

23 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत एहसास पिरो दिए हैं ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. वाह ...बहुत खूबसूरत से एहसास ...बेहतरीन ।

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  3. बहुत ख़ूबसूरत अहसास..बहुत सुन्दर रचना..

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  4. सुन्दर अहसासो की सुन्दर रचना।

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  5. बहुत ख़ूबसूरत अहसास..बहुत सुन्दर रचना..

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  6. बहुत ही खूबसूरती से एहसासों को आपने शब्दों में उतारा है आपने....

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  7. बहुत ही बेहतरीन रचना. निवेदिता जी,आप शब्दों को सहेज कर इस तरह पिरोती है जैसे फूलों की माला...... और यह माला सभी को भाती है. आभार !

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  8. बहुत सुंदर प्रतीकों से आपने अपनी बात कही है। यह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी।

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  9. मांगलिक प्रतीकों के माध्यम से सुंदरता से मनोभाव प्रकट किये हैं.

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  10. बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
    बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

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  11. सुन्दर अहसासों की बानगी...

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  12. खूबसूरत एहसासों से सजी खूबसूरत रचना दोस्त जी :)

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