शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

अवसादपूर्ण परिस्थितियाँ --साथ और सावधानी

        अवसाद ,तनाव ,पलायनवादी विचार ,निराशा--ये सब पढ़ने में तो एक शब्द लग रहें हैं ,पर जब वास्तविकता में इन में से किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है तब इनका असली अर्थ समझ में आता है और इनकी गुरुता का भान होता है |कोई घटना ,कोई परिस्थिति या यूँ कहें कि कोई एक  लम्हा जो  हमारे पूरी सोच पर हावी हो जाता है और हमारे अस्तित्व पर ही एक प्रश्नचिन्ह लगा जाता है  ,उस से परास्त होने पर अवसाद का अनुभव होता है |ऐसे में सारी दुनिया और हर तरह के सम्बन्ध झूठे प्रतीत होते हैं |किसी की दी हुई अच्छी सलाह भी अपना उपहास उड़ाती सी लगती है |
         मेरा आज का प्रश्न या कहूँ उलझन यही है की ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए  ........क्या हमें उस व्यक्ति को अकेला छोड़ देना चाहिए ,जिससे वो अपनी समस्या से खुद लड़ कर समाधान पा सके |उससे उसकी उन तमाम उलझनों का कारण पूछना चाहिए ,फिर हल करना चाहिए |
         मेरी व्यक्तिगत सोच में तो उस व्यक्ति को सिर्फ इतना एहसास कराना चाहिए कि ,परिस्थितियाँ कितनी भी दुष्कर प्रतीत हो रही हो उसका समाधान पाया जा सकता है |इस सारी प्रक्रिया में हालात कितने भी बदतर हो जायें ,वो दुर्बल नहीं है हम अपनी सकारात्मक सोच के साथ उसके साथ हैं |वो किसी भी हाल में अकेला नहीं है |कितना भी नीचे गिर चुके हों और कोई मार्ग न दिख रहा हो ,तब भी ऊपर उठने की शुरुआत कभी भी की जा सकती है |  इस पूरी प्रक्रिया में ध्यान सिर्फ इतना रखना है कि हमारा साथ या समर्थन उसको जबरन थोपा हुआ न लगे |उसको सिर्फ सहभागिता का एहसास कराना चाहिए ,जिसमें उसको निर्णय लेने की स्वतंत्रता हो |इस पूरी प्रक्रिया में विशेष सावधानीपूर्ण आचरण की आवश्यकता होती है क्योंकि अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति ही अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी न हो पाने की स्थिति  में सामान्यत: अवसाद का शिकार हो जाता है |तनिक सी भी ठेस उस व्यक्ति को गलत कदम उठाने के लिये प्रेरित कर सकती है !ऐसी किसी भी परिस्थिति में आवश्यकता सिर्फ़ उस व्यक्ति का आत्म्विश्वास जाग्रत करने की है । एक बार ऐसा हो जाने पर बाकी का काम सहज हो जायेगा .....

14 टिप्‍पणियां:

  1. रास्तों की जटिलताएं , स्थिति की गम्भीता तभी नज़र आती है- जब व्यक्ति खुद उन्हें पार करता है .... कई बार गिरता है, टूटता है , जुड़ता है .... नसीहतें बेमानी होती हैं , पर उनके बीच से ही अपने निर्णय का सवेरा होता है ....

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  2. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  3. अकेलापन तो और भी अवसाद की तरफ ले जायेगा ... सार्थक लिखा है ..ऐसे समय आत्मविश्वास जगाने की ही ज़रूरत है ...

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  4. हौसले के पंख चाहिए उड़ने के लिए, सार्थक पोस्ट आभार

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  5. अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति ही अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी न हो पाने की स्थिति में सामान्यत: अवसाद का शिकार हो जाता है |तनिक सी भी ठेस उस व्यक्ति को गलत कदम उठाने के लिये प्रेरित कर सकती है !ऐसी किसी भी परिस्थिति में आवश्यकता सिर्फ़ उस व्यक्ति का आत्म्विश्वास जाग्रत करने की है ।

    आपकी सोच से मै सहमत हूँ.आत्मविश्वास की जागृति अतिआवश्यक
    है अवसाद से ग्रसित व्यक्ति में.

    भगवद्गीता में भी भगवान कृष्ण ने अर्जुन को विषाद से उभारने के
    लिए 'सांख्य योग' के द्वारा सर्वप्रथम उसमें आत्मविश्वास जाग्रत करने का उपदेश किया.इसके बाद ही 'कर्म योग' का.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  6. आत्मविश्वास जगाने की प्रक्रिया ही अवसाद से दूर करती है ...इसमें गीता का सिद्धांत भी बहुत उपयोगी है !

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  7. अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति ही अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी न हो पाने की स्थिति में सामान्यत: अवसाद का शिकार हो जाता है..बिल्कुल सही लिखा, आभार.

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  8. आपकी खुबसूरत सोच को मैं प्रणाम करती हूँ दोस्त और आपकी सभी बात से सहमत हूँ और ये बात बिलकुल सच हैं अगर इन्सान में सकारात्मक सोच होगी तो हर परिस्थिति से खुद को उपर उठा सकता है |
    बहुत सुन्दर विषय पर चर्चा |

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  9. कुछ स्वयं सुलझाने देना चाहिये, कुछ सहायता कर देनी चाहिये। संतुलन आवश्यक है जीवन में।

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  10. सही कहा ... हिम्मत बढानी चाहिए ... आत्मविश्वास जगाना चाहिए ...

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  11. रहिमन चुप हो बैठिये देखि दिनन का फेर
    जब अइहें नीक दिन बनत न लगिहें देर
    (best formula)

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