हमारी पहली श्वांस से ही उम्र अपनी दस्तक देना शुरू कर देती है ,पर हम अनजान सा बने उसको अनदेखा कर जाते हैं | ज़िन्दगी के प्रारंभिक पल सिर्फ खुशियाँ और व्यस्तता बरसाते रहते हैं | कुछ उम्र का अल्हड़पन , कुछ विचारों की तीव्रतम गति किसी लम्हे पर ठिठक कर नित नई उलझनें देती श्वासों को थामने का मौक़ा ही नहीं देते | ये वो दौर होता है जब हर मंजिल अपनी पहुँच में और हर कठिनाई आसान प्रतीत होती है | असफलता ,तो हमें लगता है सफलता का पहला सोपान है | कोई भी दुःख अथवा कष्ट , कभी लगता ही नहीं कि हमारे जीवन में भी आ सकता है | पर वास्तव में उम्र का सत्य हर कदम पर अपना एहसास कराता रहता है |
आने वाली हर श्वांस उम्र के एक लम्हे के पूर्ण हो चुकने का आभास देती है | आगे बढ़ता हुआ हर क़दम जीवन यात्रा की पूर्णता की तरफ इंगित करता है | लगता है जैसे एक दायरा पूरा हो चला ! अबोधावस्था से क्रमिक ज्ञान की तरफ जाती चेतना परम की तरफ ले जाती है | जैसे - जैसे उलझनें बढती हैं सरल मन भी छल और कपट को समझने लगता है | इसको ही तथाकथित सामाजिकता और समझदारी मान लिया जाता है |
नित बढती शक्ति और सामर्थ्य के मद में ,समस्त संसार को नश्वर और खुद को प्रबल मानने की छलनामयी भूल कर जाता है | पर यहाँ भी उम्र अपनी दस्तक से उसको सचेत करने का प्रयास करती है | कभी नेत्रों की ज्योति कमजोर होने लगती है , तो कभी बढ़ते कदमों की दृढ़ता लड़खड़ाने लगती है | कभी केशों में सफेदी दस्तक देती है , तो कभी वाणी की स्पष्टता धूमिल हो जाती है | बढती आयु अपना एहसास कुछ ऐसा दिलाती है कि हम पूरा शरीर न रह कर , कष्ट के अनुसार विभिन्न अंगों में बँट जाते हैं और उस पीड़ा से मुक्ति की कामना में चिकित्सक के द्वार पहुँचने लगते हैं | पर तब भी सहजता से बढती उम्र का स्वागत न करके अफ़सोस के साए में गुम हो जाते हैं | कितना भी जीवन गुज़र गया हो ,जीना नहीं सीख पाते |
बढती उम्र की दस्तक तो एक धूम्र - रेखा सी होती है , एकदम हल्की सी झलक कर शीघ्रता से ओझल हो जाने वाली | सही समय पर इस को समझ लिया जाए और अपने आचरण को सुधार लें तो कोई पछतावा नही होगा | इसके लिए हमको बस हर लम्हे का सम्मान करना आना चाहिए | अन्यथा समय निकल जाने के बाद पश्चात्ताप करना तो आसान ही है !
-निवेदिता
जो भी है... बस एक यही पल है ...
जवाब देंहटाएंसच कहा शिखा ,पर क्या करें आने वाला पल जाने वाला है .....-:)
हटाएंइसलिए हर पल यहाँ जी भर जियो, क्यूंकि जो आज है क्या पता कल हो ना हो... :-)
हटाएंsimply superb. Nice lines.
जवाब देंहटाएंumra ka kya, wo to rukna nahi...di:)
जवाब देंहटाएंअर्रे.............डराओ मत..........
जवाब देंहटाएंडेट ऑफ बर्थ याद दिला दी.......
:-(
सस्नेह
अनु
उम्र की दस्तकें आगाह करती हैं, और हम बचपन के झूले में पींगे भरते अनदेखा करते जाते हैं, तभी घुटना मुचकता है- आह !
जवाब देंहटाएंमुझे तो दर्पण डराता था लेकिन अब वो मुझसे डरने लगा है मैंने उसकी आँखों में आंखे डालना सीख लिया है.
जवाब देंहटाएंहम हो खाली हो आने वाले समय से स्वयं को भरते रहते हैं, बीते से क्या दिल लगाना?
जवाब देंहटाएंबस यही एक पल है कर ले पूरी आरजू ,,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
हमारी पहली श्वांस से ही उम्र अपनी दस्तक देना शुरू कर देती है.............पहले वाक्य ने ही बहुत प्रभावित किया.
जवाब देंहटाएंपूरा पढ़ गया.बहुत सुन्दर तरीक़े से लिखा है आपने.
सुन्दर व सटीक लेख।
जवाब देंहटाएंउम्र के हर पड़ाव में समझोता और तालमेल से ही जीवन सही ढंग से चल सकता हैं ...बहुत बढिया लेख :)))
जवाब देंहटाएंसही कहा, समय चूकि पुनि का पछतानी।
जवाब देंहटाएंउम्र तो अपना असर दिखाती ही है , समझे ना समझे !
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