बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

ओ आसमान के चाँद !!!




ओ आसमान के चाँद ,
तुम वहीं कहीं चमकना ,
भूले से भी कभी यूँ ही 
नीचे न आ जाना .....
अपनी आदत से मजबूर 
तुझे किरचों सा तराश 
टुकड़ों-टुकड़ों में बाँट डालेंगे 
तेरी चांदनी भी कटी-फटी
टुकड़ों में ही झिलमिलायेगी
चमक कहाँ ,वो तो चांदनी की 
दम तोड़ती परछाईं रह जायेगी
हम तो तुझे हर वार-त्यौहार  में 
शगुन सा पुकारेंगे ,तुझे देख-देख  
तुझ पर पुष्प ,अर्ध्य - जल वारेंगे 
कामना की पूर्ती में शीश नवायेंगे  
गणेश -चौथ हो या करवा -चौथ
निहारते तेरी बाट ..... 
पर तू न आया तब भी  ,हम तो 
अपने धरती के चाँद में तुझे पायेंगे 
पर कहीं भूले से आ गया , तुझ में 
दाग खोज मन ही मन मुस्कायेंगे .....
कभी जीवन कभी जल की खोज में 
तुझ तक पहुँच तेरे भी टुकड़े कर डालेंगे
तुझे पूजते-पूजते तेरे टुकड़ों को भी   
बेच-बेच कर सब से ऐसे ही पुजवायेंगे
इसीलिये ओ चाँद !आसमान के चाँद !
भूले से भी धरती पर न आ जाना .........
                                           -निवेदिता 

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत कविता निवेदिता जी बधाई

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  2. मनुष्य की लिप्सा, लालसा और भौतिक इच्छाओं ने चांद को धरती का चांद कहने लायक ही न छोड़ा है इसलिए बेहतर तो यही है कि चांद न आए धरती पर।

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  3. अभी तो कम से कम सबके हो, आगे न जाने क्या होगा?

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  4. लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  5. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  6. बहुत ही खूबसूरत कविता।
    -----
    कल 14/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. लाजवाब रचना
    बहुत ही अच्‍छी

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  8. sach hi kahaa hai aapne.....insaan ka bas chale to har chiz ko tukdon men baant daale....

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  9. सही है , भू माफिया की नजर लग चुकी है ,सुना है प्लाट भी बिक रहे हैं ।

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  10. एक व्यथा को चाँद के जरिये बहुत ही कुशलता से व्यक्त किया है.वाह !!!

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  11. अपनी आदत से मजबूर
    तुझे किरचों सा तराश
    टुकड़ों-टुकड़ों में बाँट डालेंगे....

    आह! व्यथा के शब्द... करते निःशब्द.....
    सादर....

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  12. निवेदिता जी नमस्कार, बहुत सुन्दर रचना।

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  13. निवेदिता जी बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..हम तो तुझे अपने चाँद में ...करवा चौथ मुबारक हो ...भ्रमर५
    गणेश -चौथ हो या करवा -चौथ
    निहारते तेरी बाट .....
    पर तू न आया तब भी ,हम तो
    अपने धरती के चाँद में तुझे पायेंगे
    पर कहीं भूले से आ गया , तुझ में
    दाग खोज मन ही मन मुस्कायेंगे .

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  14. कभी जीवन कभी जल की खोज में
    तुझ तक पहुँच तेरे भी टुकड़े कर डालेंगे
    तुझे पूजते-पूजते तेरे टुकड़ों को भी
    बेच-बेच कर सब से ऐसे ही पुजवायेंगे..

    मीठा मीठा व्यंग्य किया आपने इंसानियत पर... बहुत खूब..!!

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  15. वाह .. क्या बात कही है ... सच में इस चाँद को धरती पर नहीं आना चाहिए ... नहीं तो दुनिया उसे बेच खायेगी ...

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