शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

बिखरे लम्हे ..................



क्या खोजा ,क्या पाया 
क्या चाहा ,क्या सराहा 
क्या फला ,क्या झरा 
क्या जला ,क्या बुझा 
इन उलझनों में भटकता 
मन वृन्दावन हो गया !


सबसे मूल्यवान जल 
प्रिय नयनों में बसता है 
मात्र इक प्रतिशत पानी 
शेष बसती भावनाएं हैं !


इतना भर आया मन 
सब शून्य हो गया 
छलकते रहे मन-प्राण 
शुष्क मधुबन हो गया !


बाल मन की चाह चाँद पाने की 
युवा मन की चाह चाँद बन जाने की 
हारे मन की कैसी अनोखी प्यास 
अमावस में चांदनी बचा ले जाने  की !
                                       -निवेदिता 

31 टिप्‍पणियां:

  1. इतना भर आया मन
    सब शून्य हो गया
    छलकते रहे मन-प्राण
    शुष्क मधुबन हो गया !
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  2. अमावस के लिये कितना बचाकर रखते रहते हैं, चाँदनी भी।

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  3. बाल मन की चाह चाँद पाने की
    युवा मन की चाह चाँद बन जाने की
    हारे मन की की अनोखी प्यास
    अमावस में चांदनी बचा ले जाने की !

    बेहतरीन पंक्तियाँ।
    ----
    कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. बाल मन की चाह चाँद पाने की
    युवा मन की चाह चाँद बन जाने की
    हारे मन की की अनोखी प्यास
    अमावस में चांदनी बचा ले जाने की !
    andheri raat ke lie thoda prakash sab bacha hi lete hain....
    bahut sundar rachna

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  5. ab to bas yahi kahna hai ki dard mere gaan ban ja
    sun jise dharti ki chhati hil pade ....

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  6. निवेदिता जी इस पोस्ट की तारीफ़ के लिये शब्द कम पड रहे हैं……………शानदार प्रस्तुति।

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  7. सुन्दर भावों से सजी कविता. दीपावली की अग्रिम शुभ कामनाये स्वीकार करे

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  8. ''सबसे मूल्यवान जल
    प्रिय नयनों में बसता है
    मात्र इक प्रतिशत पानी
    शेष बसती भावनाएं हैं !''

    गजब की भावनाएं....
    बेमिसाल.... लाजवाब.....

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  9. बाल मन की चाह चाँद पाने की
    युवा मन की चाह चाँद बन जाने की
    हारे मन की कैसी अनोखी प्यास
    अमावस में चांदनी बचा ले जाने की !

    वाह ..

    बहुत खूब !!

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  10. सबकी अपनी-आपनी चाह है। पर सही चाह तो उससे मिलन की ही है।

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  11. बाल मन की चाह चाँद पाने की
    युवा मन की चाह चाँद बन जाने की
    हारे मन की कैसी अनोखी प्यास
    अमावस में चांदनी बचा ले जाने की !

    bahut sundar nivedita jee...

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  12. शानदार लेखन...........
    बेहतरीन अभिव्यक्ति......
    वाह......

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  13. खूबसूरत कविता निवेदिता जी |दीपावली की शुभकामनाएं |

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  14. बहुत ही खूबसूरत रचना...
    सादर बधाई...

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  15. क्या खोजा ,क्या पाया
    क्या चाहा ,क्या सराहा
    क्या फला ,क्या झरा
    क्या जला ,क्या बुझा
    इन उलझनों में भटकता
    मन वृन्दावन हो गया !गहन एहसासों को वयक्त करती रचना...

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  16. इन उलझनों में भटकता
    मन वृन्दावन हो गया !....

    सच को उद्घाटित करती पंक्तियाँ !!

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  17. निवेदिता जी, आपने बहुत गहरी बात कह दिया है .बहुत सुन्दर रचना..

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  18. बहुत प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  19. निवेदिता जी खूबसूरत भावपूर्ण कविता |दीपावली की शुभकामनाएं |

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  20. इतना भर आया मन
    सब शून्य हो गया
    छलकते रहे मन-प्राण
    शुष्क मधुबन हो गया !
    ....gahan vedanamay man ki ek jhini aawaj.

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  21. बिखरे लम्हों को सिद्दत से महसूस किया है आपने इस कविता में। ..अच्छी लगी।

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  22. सबसे मूल्यवान जल
    प्रिय नयनों में बसता है
    मात्र इक प्रतिशत पानी
    शेष बसती भावनाएं हैं !

    ....बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  23. हारे मन की कैसी अनोखी प्यास
    अमावस में चांदनी बचा ले जाने की !
    bhad khoobsurat

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  24. इतना भर आया मन
    सब शून्य हो गया
    छलकते रहे मन-प्राण
    शुष्क मधुबन हो गया !

    बहुत हि सुन्दर भावनात्मक!
    शुभकामनायें!

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  25. हारे मन की कैसी अनोखी प्यास
    अमावस में चांदनी बचा ले जाने की !
    सुंदर!

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  26. क्या खोजा ,क्या पाया
    क्या चाहा ,क्या सराहा
    क्या फला ,क्या झरा
    क्या जला ,क्या बुझा
    इन उलझनों में भटकता
    मन वृन्दावन हो गया ! bhaut hi khubsurat... happy diwali...

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