मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

हम दूसरों का जीवन अधिक अच्छी तरह से अनुभव करतें हैं .......



      शायद सुनने में अजीब लगे ,पर ये अक्षरश: सच है कि हम दूसरों का जीवन अधिक अच्छी तरह से अनुभव करतें हैं | 

     अपने स्वयं के जीवन में घटने वाली घटनाओं और चुनैतियों का हम सामना करते हैं ,जबकि दूसरों के साथ घटित होने पर हम प्रतिक्रिया भी देते हैं |अपना बचपन कब आ कर बीत जाता है कोई भी नहीं जान पाता ,क्योंकि वो जीवन का सबसे निश्छल और पावन समय होता है | बच्चे कुछ सोचते नहीं हैं ,बस अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर देते हैं | वो कैसे लग रहें हैं अथवा क्या कर रहें हैं ,ये बिना सोचे अपने हर पल को जीते हैं | जब खुद बड़े हो जाते हैं तब दूसरों का बचपन देख कर उसको समझते हैं | थोड़े बड़े होने पर अपनी पढाई में इतना व्यस्त हो जातें हैं कि और कुछ भी नहीं देखते हैं | जब जीवन एक दिशा पा कर थोड़ा सा शिथिल होता है तब घर अथवा छात्रावास में जीवन के सबसे अमूल्य बेफिक्री के लम्हों को जीते हैं | जब अपने जीवन के कर्मक्षेत्र में चुनौतियों का सामना करते हैं और अपना पारिवारिक जीवन प्रारम्भ करते हैं ,तब फिर से व्यस्तताओं में घिर कर छोटे-छोटे लम्हों और उनकी खुशियों  को अनदेखा सा कर जाते हैं | इस पूरे समय में ही हमारे जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बातें हो चुकती हैं ,जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर के और अधिक उपलब्धियां पाने का प्रयास करते हैं | अपने जीवन के अधिकतर उत्तरदायित्वों से मुक्त हो कर प्रौढावस्था में ,हमको खुद अपने जीवन को देख पाने का समय मिलता है ,पर तब जीवनचर्या एक सपाट ढर्रे पर चल देती है लगभग घटनारहित हो कर | उस समय हम दूसरों के बच्चों में अपना और अपने बच्चों का बचपन खोजने लगते हैं | अपने जीवन का लक्ष्य खोजते युवाओं को देख कर उनकी ऊर्जा को अनुभव करते हैं | अपने बच्चे कब पढाई पूरी करके जीवन में व्यवस्थित हो गये पता ही नहीं चलता | दूसरों के बच्चों को देखने पर इसमें किये जाने वाले प्रयास की अनुभूति होती है | 
        शायद इसके मूल में एक ही तत्व रहता है कि हम अपना जीवन चुनते नहीं है ,अपितु जब - जैसी परिस्थितियाँ सामने आती हैं उसको जीते हैं | उन लम्हों की व्यस्तता चुनौतियों का सामना करने को ही प्रवृत्त करती है ,दूसरे रास्ते खोजने का मौक़ा ही नहीं रहता है | अपने जीवन के उत्तरकाल में एक प्रकार से कार्यरिक्त होने पर बचने वाले खाली समय में हम दूसरों के जीवन की अनुभूतियों को अधिक तीव्रता से अनुभव करते हैं | ऐसा सिर्फ सुखद परिस्थितियों में ही नहीं ,दुःख में भी होता है | दूसरों का दुःख और उससे उत्पन्न हालात हम समझ पातें हैं ,जबकि अपने जीवन में घटित दुखद हालात हमें स्तब्ध कर देते हैं | इन परिस्थितियों से सम्भवत: सिर्फ वही लोग बच पाते होंगे जो आत्मकेंद्रित रहते हों |
         अपने जीवन में बीतने वाले हर पल को हम जीते हैं और दूसरों के पलों को हम अनुभव करते हैं !

10 टिप्‍पणियां:

  1. आइन्स्टीन भी यही कह गये हैं, समस्या निवारण के बारे में।

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  2. सही कहा आपने कि हम अपना जीवन चुनते नहीं परिस्थितियों को जीते हैं.

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  3. जीते तो हम खुद को ही हैं , दूसरों के अनुभवों में हम खुद को ही पाते हैं

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  4. ऐसा भी तो होता हैं निवेदिता जी कि हमें लगता है हमारे जीवन में ऐसा कुछ है ही नहीं जिसे वर्णित किया जाय या जिस पर प्रतिक्रिया दी जाय.
    प्रेरक पोस्ट.... आभार !

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  5. बहुत ही अच्छा और सार्थक आलेख ,बधाई!

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  6. शायद तभी माँ बाप को उनके बच्चे ज्यादे प्यारे लगते अहिं ... क्योंकि वो उनका जीवन जीते हैं ... अच्छा लेख ...

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