ओ आसमान के चाँद ,
तुम वहीं कहीं चमकना ,
भूले से भी कभी यूँ ही
नीचे न आ जाना .....
अपनी आदत से मजबूर
अपनी आदत से मजबूर
तुझे किरचों सा तराश
टुकड़ों-टुकड़ों में बाँट डालेंगे
तेरी चांदनी भी कटी-फटी
टुकड़ों में ही झिलमिलायेगी
टुकड़ों में ही झिलमिलायेगी
चमक कहाँ ,वो तो चांदनी की
दम तोड़ती परछाईं रह जायेगी
हम तो तुझे हर वार-त्यौहार में
शगुन सा पुकारेंगे ,तुझे देख-देख
तुझ पर पुष्प ,अर्ध्य - जल वारेंगे
कामना की पूर्ती में शीश नवायेंगे
गणेश -चौथ हो या करवा -चौथ
निहारते तेरी बाट .....
पर तू न आया तब भी ,हम तो
अपने धरती के चाँद में तुझे पायेंगे
पर कहीं भूले से आ गया , तुझ में
दाग खोज मन ही मन मुस्कायेंगे .....
कभी जीवन कभी जल की खोज में
तुझ तक पहुँच तेरे भी टुकड़े कर डालेंगे
तुझे पूजते-पूजते तेरे टुकड़ों को भी
बेच-बेच कर सब से ऐसे ही पुजवायेंगे
इसीलिये ओ चाँद !आसमान के चाँद !
भूले से भी धरती पर न आ जाना .........
-निवेदिता
बहुत ही खूबसूरत कविता निवेदिता जी बधाई
जवाब देंहटाएंमनुष्य की लिप्सा, लालसा और भौतिक इच्छाओं ने चांद को धरती का चांद कहने लायक ही न छोड़ा है इसलिए बेहतर तो यही है कि चांद न आए धरती पर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना निवेदिता जी ..
जवाब देंहटाएंबहतरीन रचना.....
जवाब देंहटाएंkhubsurat rachna...
जवाब देंहटाएंसच ही कहा है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
अभी तो कम से कम सबके हो, आगे न जाने क्या होगा?
जवाब देंहटाएंchaand ko bachaane ka athak prayaas achha laga...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता।
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कल 14/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी
sach hi kahaa hai aapne.....insaan ka bas chale to har chiz ko tukdon men baant daale....
जवाब देंहटाएंयथार्थ को अभिवक्त करती कविता.
जवाब देंहटाएंयथार्थ ...बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसही है , भू माफिया की नजर लग चुकी है ,सुना है प्लाट भी बिक रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंएक व्यथा को चाँद के जरिये बहुत ही कुशलता से व्यक्त किया है.वाह !!!
जवाब देंहटाएंअपनी आदत से मजबूर
जवाब देंहटाएंतुझे किरचों सा तराश
टुकड़ों-टुकड़ों में बाँट डालेंगे....
आह! व्यथा के शब्द... करते निःशब्द.....
सादर....
निवेदिता जी नमस्कार, बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता है
जवाब देंहटाएंbahut achchi kalpna hai.......
जवाब देंहटाएंbeautiful imagination and well written.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..हम तो तुझे अपने चाँद में ...करवा चौथ मुबारक हो ...भ्रमर५
जवाब देंहटाएंगणेश -चौथ हो या करवा -चौथ
निहारते तेरी बाट .....
पर तू न आया तब भी ,हम तो
अपने धरती के चाँद में तुझे पायेंगे
पर कहीं भूले से आ गया , तुझ में
दाग खोज मन ही मन मुस्कायेंगे .
कभी जीवन कभी जल की खोज में
जवाब देंहटाएंतुझ तक पहुँच तेरे भी टुकड़े कर डालेंगे
तुझे पूजते-पूजते तेरे टुकड़ों को भी
बेच-बेच कर सब से ऐसे ही पुजवायेंगे..
मीठा मीठा व्यंग्य किया आपने इंसानियत पर... बहुत खूब..!!
बहुत ही खूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंवाह .. क्या बात कही है ... सच में इस चाँद को धरती पर नहीं आना चाहिए ... नहीं तो दुनिया उसे बेच खायेगी ...
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