शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

काँच के रिश्ते ?


नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं 
या रिश्तों में दरकता है काँच 
निर्मल काँच ही है चमकता
रेत का एक कण भी कहीं 
बहुत गहरे छोड़ जाता है 
चंद प्रश्न करते हुए निशान 
आत्मा को खरोंचती अनबूझी 
रपटीली पगडंडियों सी चिटकन 
इन रिश्तों में दिखती अपनी ही 
अजनबी सी परछाईं है , 
अपने ही  अनसुलझे सवालों के 
मनचाहे जवाब तलाशता 
अपराधी सा अंतर्मन है .....
                        -निवेदिता 

22 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों में दरकता है काँच
    आत्मा को खरोंचती
    per is khoon ka swaad bhi ajib hai

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  2. नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं
    या रिश्तों में दरकता है काँच
    निर्मल काँच ही है चमकता
    रेत का एक कण भी कहीं
    बहुत गहरे छोड़ जाता है... गहरी छाप छोडती रचना.....

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  3. नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं
    या रिश्तों में दरकता है काँच

    sundar...

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  4. नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं
    या रिश्तों में दरकता है काँच
    घोर असमंजस की स्थिति है यह!

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  5. रेत का एक कण भी कहीं
    बहुत गहरे छोड़ जाता है
    चंद प्रश्न करते हुए निशान

    बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।

    सादर

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  6. नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं
    या रिश्तों में दरकता है काँच
    मुश्किल प्रश्न उत्तर की तलाश जारी है ........

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  7. अनुपम प्रस्तुति है आपकी,निवेदिता जी.
    अंतर्मन को झंकृत करती हुई.
    आभार.

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  8. गहरी भावाभिव्‍यक्ति।

    सुंदर शब्‍द संयोजन।

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  9. रिश्तों की अनुपम प्रस्तुति

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  10. कांच की पहली शर्त है पारदर्शिता। रेत का एक कण भी खलल डालने के लिए पर्याप्त है। कांच के रिश्ते बेवजह चटक जाते हैं। नहीं पचा पाते रेत के एक कण को भी।

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  11. मनचाहे जवाब तलाशता
    अपराधी सा अंतर्मन है .....
    सहज पर सटीक!

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  12. नहीं पता ये काँच के रिश्ते हैं
    या रिश्तों में दरकता है काँच

    सुन्दर!
    गंभीर चिंतन/अभिव्यक्ति....
    सादर...

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  13. जब दरकाता है कांच तो उसकी आहट अंदर में बहुत दूर तक सुनाई देती है। लगता है यह तो फिर से न जुड़ने वाला चोट दे गया।

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  14. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  15. चंद प्रश्न करते हुए निशान
    आत्मा को खरोंचती अनबूझी
    रपटीली पगडंडियों सी चिटकन
    इन रिश्तों में दिखती अपनी ही
    अजनबी सी परछाईं है ,

    bahut sundar aur gehra likha hai..
    badhai ho..

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  16. अपने ही अनसुलझे सवालों के
    मनचाहे जवाब तलाशता
    अपराधी सा अंतर्मन है .....

    ....बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  17. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ!

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