अपनी धुन में रिश्ते यूँ ही निभाते रहे
पिछली रिसती साँसे अनदिखी रहीं
सलामत रहे रिश्ते टीस सा चुभते रहे
सोचा दरारों में कुछ फूल पनप जाएँ
टूटन से बहते पलों को यादें थाम लेंगी
सुरभित पुष्प न सही कहीं से कभी तो
थोड़ी सेवार बहते लम्हों की बाँह गहेगी
नाकाम सी उम्मीद लिए रीतते लम्हों को
नई पहचान देते झूठा सुकून तलाशते रहे
शून्य सी पहचान लिए दायरे का अनदिखा
सिरा तलाशते रह गये ..................
टूटे बरतन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
सच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा .......
-निवेदिता
niveditaa bahan aapke blog pr likhi aek aek rchnaa or uskaa prstutikaran vaah khin nzar naa lg jaye pliz nazar zrur utaar lena ......akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंटूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह देती हैं।
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
बेहद गहन मगर दिल को छूती अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंरिश्ते तो अस्तित्व हल्का करने वाले हों।
जवाब देंहटाएंहम अधिकांश संबंधों को जी नहीं पाते, उन्हें ढोना ही पड़ता है...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से लिखा आपने ... धन्यवाद..
काश !!! रिश्ते कुछ आसान होते...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंटूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा ...बहुत गहन अनुभूति लिए सार्थक रचना.......
टूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा .......
...गहन चिंतन का बहुत सुन्दर और प्रभावी चित्रण..
दिल को छूती रचना....
जवाब देंहटाएंbeauteous !!!
जवाब देंहटाएंमाटी को माटी में ही मिल जाना है....
जवाब देंहटाएंबहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...
टूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा ...
यथार्थ को कहती पंक्तियाँ ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
टूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा .......
Waah...Gahan Vichar
बहुत सुंदर कविता ,गहरे भावार्थ बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंटूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा .......bhaut hi sarthak aur bhaavmayi panktiya...
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंऔर भावानुरूप चित्र... वाह..
सादर बधाई...
टूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा .......
bejod bhaw
गहन भावों का समावेश ।
जवाब देंहटाएंटूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा .......
सूफी चिंतन से परिपूर्ण एक गहन आत्मानुभूति ...हार्दिक शुभ कामनाएं एवं अभिनन्दन !!!
भावत्मक अभिव्यक्ति देती इस कविता में लगाए आपके चित्र ने एक-एक शब्द को सजीव कर दिया है।
जवाब देंहटाएंयथार्थ को कहती पंक्तियाँ ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अनुभूति लिए सार्थक रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत उम्दा!!!
जवाब देंहटाएंटूटे बर्तन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है
दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है
मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा ....... shandaar.rachna...hardik badhayee...
यथार्थ ........बहुत गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंटूटे बरतन या चिटके फूलों से सजा गुलदान
जवाब देंहटाएंसच अंतिम परिणति तो सिर्फ इतनी ही है दोनों की माटी को माटी में ही मिल जाना है मन बावरा बहकता रहा भटकता रहा ....
गहरा जीवन दर्शन समेट दिया हैं इन लाइनों में ... बेहतरीन ..
बहुत खूब...
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