मानवीय प्रवृत्ति कभी-कभी विचित्र परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देती है | हम जिस दुखद स्थिति से खुद को दूर रखना चाहते हैं ,उसको ही प्रतिपल अपने अंदर-बाहर ध्वनित करते रहते हैं | जिन सुख के लम्हों को थामने की सोचते हैं ,उन्हें ही उत्सवित होते गुजर जाने देते हैं | शायद वो उन लम्हों का भारी अथवा हल्का होना ही इसका कारण होगा | खुशियों से भरे न जाने कितने वर्ष कब बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता ,जब भी सोचा तो पलक झपकने की अनुभूति ही हुई | मातम की सिर्फ एक रात ,जब कोई अपनी जीवन-यात्रा पूरी कर सामने निश्चल-निर्जीव हो लिटाया गया हो लगता है अनंत युग से भी लम्बी हो गयी है ......सुबह होने का नाम ही नहीं लेती !
खुशी भरे पल अंतस तक को प्राणवान कर देते हैं | शायद इसीलिये हँसी पहले हृदय में तरंगित होती है ,फिर शरीर तक आती है और चेहरे तक पहुँच स्मित अथवा अट्टहास बन माहौल को ऊर्जवित कर देती है | जब मन शांत होता है तभी किसी भी सुख का आभास हो सकता है | दुःख का प्रथम आभास जरूरी नहीं कि मन को ही हो |शारीरिक पीड़ा पहले वाह्य रूप से महसूस करते हैं | कष्ट होने पर बहने वाले आँसू का स्रोत अवश्य अंतरमन ही होता है ,परन्तु आँसू आँखों से बह कर हमारे चेहरे को ही भिगो जाते हैं | बेशक माहौल थोड़ा संजीदा हो जाता है ,पर उस के सामने से हटते ही सब भूल भी जाते हैं | सूख चुके आँसू भी मन को यदाकदा भिगोते ही रहते हैं |
इसके मूल में शायद अच्छे की अनदेखी करना ही है | कितनी खराब चीजों को हम सहेजे रहते हैं | सराहना के भावों और शब्दों को भूल कर चुभती बातें याद करते रहते हैं | संभवत: ऐसा करके हम खुद से शत्रुता निभाते हैं|
पेंचो ख़म में उलझी ज़िन्दगी
नित नई कसौटी पर कैसे कसें
ख़ुद को चीरती पगडंडियों को
चक्रव्यूह की उलझन कैसे देअपने लम्हों का भारीपन
कुछ ऐसा हल्का भी नहीं
कुछ ऐसा हल्का भी नहीं
औरों के गहराते साए क्यों ढोयें ........
-निवेदिता
-निवेदिता
पेंचो ख़म में उलझी ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंनित नई कसौटी पर कैसे कसें
ख़ुद को चीरती पगडंडियों को
चक्रव्यूह की उलझन कैसे दे
अपने लम्हों का भारीपन
कुछ ऐसा हल्का भी नहीं
औरों के गहराते साए क्यों ढोयें ....गहराते साए ...और आपकी ये पंक्तिया.. कुछ कहने को रहा ही नही....
खुशी भरे पल अंतस तक को प्राणवान कर देते हैं | शायद इसीलिये हँसी पहले हृदय में तरंगित होती है ,फिर शरीर तक आती है और चेहरे तक पहुँच स्मित अथवा अट्टहास बन माहौल को ऊर्जवित कर देती है .
जवाब देंहटाएंलेकिन इस अनुभव को व्यक्ति कभी कभी ही महसूस कर पाता है ....एक पंक्ति में ही आपने उर्जा और भीतर के आनंद को परिभाषित कर दिया ....आपका आभार
gahre baith gayee aapki bat jaise khud ki hi bat ho....
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyavad...
गंभीर चिंतन।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्क्ति
जवाब देंहटाएंसच्चा सार्थक चिंतन... सादर...
जवाब देंहटाएंBEHAD GAHAN CHINTAN KI UPAJ HAI YE ABHIVYAKTI.
जवाब देंहटाएंभावों की अभिव्यक्ति बेहद सराहनीय
जवाब देंहटाएंअपने लम्हों का भारीपन
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसा हल्का भी नहीं
औरों के गहराते साए क्यों ढोयें ........
सही कहा आपने ।
पेंचो ख़म में उलझी ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंनित नई कसौटी पर कैसे कसें
ख़ुद को चीरती पगडंडियों को
चक्रव्यूह की उलझन कैसे दे
अपने लम्हों का भारीपन
कुछ ऐसा हल्का भी नहीं
औरों के गहराते साए क्यों ढोयें ......bahut hi gahan chitran
गहर अर्थ लिए ...आपकी ये रचना
जवाब देंहटाएंजीवन सच में बड़ी ही गहन पहेली है।
जवाब देंहटाएंNivedita jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
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