सन्नाटा या वीरानापन
सब हैं कितने अकेले ,
फिर भी समानार्थी बड़े ....
अकेलापन शब्द ही दृषद्वत है
धरा का हर अणु हर पल
कितना एकाकी है .......
तन्हाई का साथी अश्रु
ये भी बहता अकेला है
कितना बदनसीब है
सहारा खोजता - खोजता
भिगोता अपना ही दामन है ............
जब-जब मन व्यथित हुआ ,
तन की पीड़ा भी अलसाई ,
पल-पल कण प्रस्तर हुआ
सराहा तो मन अंधकूप हुआ ..
अकेलापन तो शायद नियति है
सृष्टि का निर्माण भी एकाकी था
अंत भी अकेला है ........ .
-निवेदिता
जब-जब मन व्यथित हुआ ,
तन की पीड़ा भी अलसाई ,
पल-पल कण प्रस्तर हुआ
सराहा तो मन अंधकूप हुआ ..
अकेलापन तो शायद नियति है
सृष्टि का निर्माण भी एकाकी था
अंत भी अकेला है ........ .
-निवेदिता
सृष्टि का निर्माण भी एकाकी था अंत भी अकेला है ........ . सही कहा आपने बहुत सुंदर बधाई........
जवाब देंहटाएंसन्नाटा या वीरानापन
जवाब देंहटाएंसब हैं कितने अकेले ,
फिर भी समानार्थी बड़े ....
अकेलापन शब्द ही दृषद्वत है .....सही कहा आपने बहुत सुंदर बधाई........
जन्म अकेला, मृत्यु अकेली,
जवाब देंहटाएंभीड़ बढ़ी, पर रही पहेली।
सन्नाटा या वीरानापन
जवाब देंहटाएंसब हैं कितने अकेले ,
फिर भी समानार्थी बड़े ....
अकेलापन शब्द ही दृषद्वत है ....
बहुत ही बढि़या ।
सृष्टि का निर्माण भी एकाकी था
जवाब देंहटाएंअंत भी अकेला है ........ .
यही शाश्वत सत्य है।
अकेलापन तो शायद नियति है
जवाब देंहटाएंसृष्टि का निर्माण भी एकाकी था
अंत भी अकेला है ........ .बहुत उच्च शब्दों का चयन.. बहुत ही प्रभावशाली रचना....
जब हम अकेले होते हैं तो हमारा साक्षी ईश्वर होता है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder shabdo se sajaya hai rachna ko..............
जवाब देंहटाएंपल-पल कण प्रस्तर हुआ
जवाब देंहटाएंसराहा तो मन अंधकूप हुआ ..
सच... सही कहा आपने..!!
गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआप तो वैरागी बना देंगी . सुँदर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें
जवाब देंहटाएंचर्चामंच-638, चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सक्स्ह है इंसान अकेले ही आता है और अकेले ही जाता है ... पर यह सोच कर अकेले रहना भी तो आसान नहीं ... सोचने को विवश करती है रचना ..
जवाब देंहटाएंbhaut hi sundar abhivaykti....
जवाब देंहटाएंसच है- तन्हाई एक अभीशाप है और इस कविता में उसकी पूरी व्यथा झलकती है।
जवाब देंहटाएंकभी तन्हाई तडपाती है तो कभी यही एकाकीपन मन को और विचारों को विस्तार भी देता है।
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई से बाँधा है...बहुत बेहतरीन!!!
जवाब देंहटाएंसन्नाटा या वीरानापन
जवाब देंहटाएंसब हैं कितने अकेले ,
फिर भी समानार्थी बड़े ....
अकेलापन शब्द ही दृषद्वत है .
sahi kaha aapane
गुरुदेव रवीन्द्र का एकला चलो का उद्घोष ऐसे ही भावों से उपजा होगा
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावशाली बहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंसत्य से रूबरू कराती कविता।
जवाब देंहटाएं..हाँ, सभी हैं अपने फिर भी हम अकेले हैं।
brilliant expressions !!
जवाब देंहटाएंa very sentimental read.
अकेलापन सदैव घटक नहीं होता शायद ...कभी कभी बहुत से ऐसे भाव फ्फोत पड़ते हैं इस अवस्था में जो इतिहास रच देते हैं....बहुत संवेदनसील और रोचक प्रस्तुति दी है आपने
जवाब देंहटाएं..बधाई
अकेलापन मन के अहसास का परिणाम है.
जवाब देंहटाएंबहुत लोगों के बीच मन अकेला भी महसूस
कर सकता है यदि मन की चाहत अनुसार
साथ न हो.आपकी प्रस्तुति सुन्दर और भावपूर्ण है,
अंत में दार्शनिकता का बोध कराती है.जो
परम सत्य है.
अकेलापन तो शायद नियति है
सृष्टि का निर्माण भी एकाकी था
अंत भी अकेला है ........ .
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,निवेदिता जी.
सुन्दर अभिव्यक्ति,सारगर्भित
जवाब देंहटाएंअकेलापन तो किसी को भी व्यथित कर देता है। ऐसे में कोई कंधा मिल जाय तो....
जवाब देंहटाएंसुंदर ..अभिव्यक्ति...शब्द और भाव दोनो बेहतरीन...बधाई
जवाब देंहटाएंसभी अकेले हैं.. रात की स्याही मे..दिन की चकाचौंध में.. दिखता है कोई.. कोई खो झता है.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति.
सभी अकेले हैं.. रात की स्याही मे..दिन की चकाचौंध में.. दिखता है कोई.. कोई खो जाता है.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति.
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
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