शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

क्यों करें तिरस्कार , इस प्यारे अन्धकार का !!!



क्यों करें तिरस्कार ,
इस प्यारे अन्धकार का !
कभी सोच कर तो देखो ,
न हो अन्धकार कहीं 
प्रकाश की कामना कौन करे !
अन्धकार भी कभी कहाँ 
अकेला ही चला आता है ,
साथ अपने चाँद-तारों की 
सजी झिलमिलाहट बटोर लाता है ! 
इस अँधेरे ने यूँ ही 
बरबस कुछ पल को सही, 
श्रांत-क्लांत चकित-भ्रमित
व्यथित व्याकुलता को विश्राम दिया !

इन अंधियारे लम्हों ने ,

कालिमा भरे पलायन ने 
कंपकपाती लपट से प्रेरित  
कितना कुछ मंथन को विवश किया !
आज इस अनदिखे 
चमकते अंधियारे के ,
चिरविदा की बहुप्रतीक्षित वेला में  
अपने श्रद्धा-सुमन सजायें 
तिरस्कार छोड़ ,दुलरा कर विदा-गान गायें !
                                                          -निवेदिता 
   
  

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. कल-शनिवार 20 अगस्त 2011 को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया अवश्य पधारें.आभार.

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  4. सुंदर विचार। एक गीत की पंक्ति याद आ गई-
    अगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहां जाते...

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  5. कभी सोच कर तो देखो ,
    न हो अन्धकार कहीं
    प्रकाश की कामना कौन करे

    भावों से सजी हुई रचना....

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  6. सुन्दर कोमल अहसास..बहुत सुन्दर

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  7. न हो अन्धकार कहीं
    प्रकाश की कामना कौन करे ! ---- बहुत कुछ कह गई यह रचना..

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  8. प्रकाश की महत्ता व्यक्त करने में अन्धकार का योगदान रहा है।

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  9. अन्धकार न हो तो प्रकाश की महत्ता ही कम हो जायेगी ...अच्छी प्रस्तुति

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  10. very beautiful expressions !!!
    presence of darkness only make u understand the importance of light.

    Nice read..

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  11. बहुत सुन्दर....
    अँधेरा भी प्यारा...
    वाह..

    सस्नेह
    अनु

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