क्यों करें तिरस्कार ,
इस प्यारे अन्धकार का !
कभी सोच कर तो देखो ,
न हो अन्धकार कहीं
प्रकाश की कामना कौन करे !
अन्धकार भी कभी कहाँ
अकेला ही चला आता है ,
साथ अपने चाँद-तारों की
सजी झिलमिलाहट बटोर लाता है !
इस अँधेरे ने यूँ ही
बरबस कुछ पल को सही,
श्रांत-क्लांत चकित-भ्रमित
व्यथित व्याकुलता को विश्राम दिया !
इन अंधियारे लम्हों ने ,
कालिमा भरे पलायन ने
कंपकपाती लपट से प्रेरित
कितना कुछ मंथन को विवश किया !
आज इस अनदिखे
चमकते अंधियारे के ,
चिरविदा की बहुप्रतीक्षित वेला में
अपने श्रद्धा-सुमन सजायें
तिरस्कार छोड़ ,दुलरा कर विदा-गान गायें !
-निवेदिता
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंbahut sunder prastuti ....sakaratmakta deti hui....!!
जवाब देंहटाएंकल-शनिवार 20 अगस्त 2011 को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया अवश्य पधारें.आभार.
जवाब देंहटाएंbahut sundar ......
जवाब देंहटाएंसुंदर विचार। एक गीत की पंक्ति याद आ गई-
जवाब देंहटाएंअगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहां जाते...
कभी सोच कर तो देखो ,
जवाब देंहटाएंन हो अन्धकार कहीं
प्रकाश की कामना कौन करे
भावों से सजी हुई रचना....
सुन्दर अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर कोमल अहसास..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना बधाई।
जवाब देंहटाएंन हो अन्धकार कहीं
जवाब देंहटाएंप्रकाश की कामना कौन करे ! ---- बहुत कुछ कह गई यह रचना..
nice one
जवाब देंहटाएंप्रकाश की महत्ता व्यक्त करने में अन्धकार का योगदान रहा है।
जवाब देंहटाएंअन्धकार न हो तो प्रकाश की महत्ता ही कम हो जायेगी ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंvery beautiful expressions !!!
जवाब देंहटाएंpresence of darkness only make u understand the importance of light.
Nice read..
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंअँधेरा भी प्यारा...
वाह..
सस्नेह
अनु