एक पल में ही जीवन कैसे-कैसे रूप बदल व्यवस्था से बिखराव तक पहुँच जाता है ,पता ही नहीं चलता |इसमें उस पल का दोष है या नियति का सब कुछ अबूझा सा रह जाता है |कब तन या मन के किस कोने से कोई रोग अकारण दस्तक दे जाता है और तन ही नहीं मन भी उसकी गिरफ्त में आ जाता है |शायद तब ही दो चेहरों की जरूरत पड़ती है |एक चेहरा हम अक्सर एक नक़ाब की तरह ओढ़े रहतें हैं जब हम तथाकथित रूप से सामाजिक परिपाटियों का निर्वहन करते रहतें हैं |उस पल में हमारा पास अपना कुछ भी निज नहीं रहता |न तो हम नितांत व्यक्तिगत कुछ सोच सकते हैं और न ही कुछ कर सकते हैं |सब एकदम बनावटी ,कितना नकली होता है |जैसे लगता है कि दूसरों के साथ खुद को भी बहला रहें हो |दूसरा चेहरा सिर्फ अपने लिए होता है ,जब आप एकदम अकेले हों अपने ही साथ और दिल यही करे कि खुद से ही बातें करें ,खुद को ही समझें और समझाएं |ऐसे समय में इतनी बातें और यादें घेर लेतीं हैं कि मन कमज़ोर सा महसूस होता है |अपनी परेशानियां भूल कर ,अपने न रहने पर ,दूसरों को हो सकने वाली परेशानियों के समाधान में उलझा और डरा मन उस पल को एक व्यवस्था देने में लग जाता है |बहुत संभावना ये भी रहती है कि शायद तब उन अपनों को वो स्थितियाँ कुछ ख़ास परेशान न करें |पर शायद ऐसा सोचना अपने अहं की संतुष्टि में ही सहायक हो रहा हो |परन्तु जब खुद व्यथित होते हुए भी मन कुछ ऐसा विचार करता हो तब उस पल की सोच को उसके अपने अहं की संतुष्टि कहना शायद उस पल का सच नहीं हो सकता |बस घबराया मन यही कामना करता है कि ऐसा पल किसी के भी जीवन में न जा सके ......
सही बात कही आपने।
जवाब देंहटाएंसादर
good
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंदुआ तो सभी की यही रहती है ......
जवाब देंहटाएंसुन्दर....और सच...
जवाब देंहटाएंलिखते हुए मन की अकुलाहट , दिमाग की सलवटें गहरे दिखती हैं ... सबको करीने से उठती हूँ , कुछ अनसमझा न रह जाए !
जवाब देंहटाएंमन बहुत चंचल है, यह वहां हर कहीं चला ही जाता है जहां इसे जाना है, चाहे हम चाहें या न चाहें.
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी ! मन की उलझन को बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है..बेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा.
जवाब देंहटाएंमन कि उलझनों पर सच्चा वक्तव्य.
जवाब देंहटाएंसच को कहती रचना...
जवाब देंहटाएंman ki uljhan... bhaut hi sundar post...
जवाब देंहटाएंमन की उलझनों को कहती कुछ उलझी उलझी सी .. खुद से मिलने के लिए नकाब का हटना ज़रूरी है .. और समय नितांत अकेलेपन की ज़रूरत .. अच्छा चिंतन
जवाब देंहटाएंपल तो समय की हाथ में होते हैं उनका क्या दोष ... मन है जो उलझता रहता है ...
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