मंगलवार, 16 अगस्त 2011

शिखण्डी .................

जरा अपनी कल्पनाओं के अश्वों की वल्गा थाम ,उस दृश्य की कल्पना करें जहाँ हस्तिनापुर के अभिमान  ,प्रतिज्ञा को परिभाषित करने वाले -शांतनु पुत्र भीष्म अपनी शर-शय्या पर सूर्य के उत्तरायण हो जाने के लिए प्रतीक्षारत हैं और उनके सामने क्लान्तमना शिखन्डी ..... दोनों ही संतापित मन:स्थिति में ! भीष्म अपनी प्रतिज्ञा के फलस्वरूप खुद अपनी न्याय-तुला पर अपना दोष महसूस करते और शिखन्डी अपनी वंचनाओं का उत्तरदायी उस युग-पुरुष  को पाते हुए भी उसको मिलने वाले दंड को कुछ अधिक ही कठोर समझते हुए | इस पूरे परिप्रेक्ष्य में पहले शिखन्डी को जानते हैं |

सत्यवती  और शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य से विवाह के लिए ,भीष्म ने काशीराज की तीनों कन्याओं अम्बा ,अम्बिका और अम्बालिका को उनके स्वयंवर-स्थल से हरण कर लिया था और अपने राज्य हस्तिनापुर ले आये |जब तीनों बहनों को विचित्रवीर्य से विवाह करवाने के लिए ले जाया जा रहा था ,तब अम्बा ,काशीराज की सबसे बड़ी पुत्री ने भीष्म से सौभ-नरेश शाल्व के प्रति अपने अनुराग को स्वीकार किया | भीष्म ने उसकी इच्छा का मान रखा और ससम्मान अम्बा को शाल्व के पास भेजा |परन्तु शाल्व ने इस रिश्ते को अस्वीकार कर दिया |उसका तर्क था कि अन्य राजाओं के साथ भीष्म ने उसको भी हरा दिया था ....... अब अम्बा से विवाह एक तरह से विजयी का विजित को दिया गया दान है जो उसको कभी भी स्वीकार्य नहीं होगा |निराश अम्बा वापस हस्तिनापुर लौट आयी |उसने अपने इस अस्वीकारे जाने के अपमान का कारण भीष्म को माना और उससे विवाह करना चाहा |भीष्म अविवाहित रहने के लिए पहले से ही प्रतिज्ञाबद्ध थे ,अत: पुन: शाल्व के पास अम्बा को भेजा |पहले के समान ही फिर अस्वीकृत होने पर ,अम्बा ने अपनी प्रतिष्ठा के इस प्रकार उपहासित होने पर इसका कारण भीष्म को माना और प्रतिशोध लेने के लिए संकल्परत हो गयी |

 अम्बा प्रतिशोध लेने की अदम्य लालसा लिए भीष्म के गुरु परशुराम की शरण में गयी |अपने प्रिय शिष्य के इस कार्य से कुपित हो कर परशुराम हस्तिनापुर पहुँचे |गुरु के इतना क्रोधित होने पर भी बिना संयम खोये हुए ,भीष्म ने अपने प्रतिज्ञाबद्ध होने की मजबूरी बतायी |परशुराम इससे संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने भीष्म को युद्ध के लिए चुनौती दी |परशुराम और भीष्म के मध्य हुए इस युद्ध को रोकने के लिए अंतत: गंगा को विकराल रूप ले कर दोनों के बीच में आना पड़ा |इस तरह युद्ध का कोई भी निर्णय न हो पाने से व्यथित हो कर परशुराम ने अम्बा को कुछ और उपाय करने की सलाह दी |अम्बा का तो अभीष्ट ही था कैसे भी भीष्म का संहार करना ,अत: वो अन्य ऋषियों के पास गयी |सहमति तो सबने ही दी परन्तु सहायता के नाम पर खुद को असमर्थ पाया |इस पूरी प्रक्रिया में ,भीष्म से असंतुष्ट कई छोटे राजा और ऋषि अम्बा के पक्ष में संगठित हो गए और भीष्म के विरुद्ध एक आक्रोशपूर्ण वातावरण बन गया |जन-समर्थन तलाशती अम्बा ,विभिन्न योग-साधनाएं करती हुई रूद्र का आशीष भी पा गयी और उसने अपना अस्तित्व अग्नि में समाहित कर दिया |पांचाल नरेश द्रुपद को शिव का आशीष मिला कि उनके घर में एक कन्या का जन्म होगा जो कालान्तर में पुरुष रूप पा लेगी |अम्बा ने द्रुपद के घर में शिव के इसी आशीष के रूप में जन्म लिया |द्रुपद ने कन्या की जगह पुत्र का होना ही बताया और नाम रखा शिखन्डी |शिखन्डी ने एक राजपुत्र के लिए उपयोगी राजनीति ,रणनीति ,कूटनीति इत्यादि सभी विधाओं में प्रवीणता प्राप्त की |


समयानुसार ,द्रुपद ने शिखन्डी का विवाह दशार्ण-नरेश हिरण्यवर्मा की बेटी से कर दिया |विवाहोपरांत  शिखन्डी ने असहज स्थितियों में गृह-त्याग कर वन की शरण ली |वन में भटकते हुए शिखन्डी ,वन के रक्षक स्थूणाकर्ण से मिला ,जो शल्य-क्रिया में निपुण था |शिखन्डी की समस्या से अवगत होने पर उस यक्ष ने शल्य-क्रिया के द्वारा उसको पुरुष रूप दिया |उस के पुरुष रूप में वापस आ जाने से पांचाल और दशार्ण के बीच होने वाला युद्ध रुक गया |


महाभारत का युद्ध होने पर ,शिखन्डी द्रुपद के साथ पाण्डवों के पक्ष में लड़ा |स्वयं भीष्म ने कौरवों की सेना का नेतृत्व किया |भीष्म के संहार से त्रस्त हो पाण्डव उन के अंत का तरीका जानने पहुँचे |भीष्म ने कहा कि वो भीत ,शरणागत ,संतानहीन ,विकलांग ,नपुंसक ,स्त्री ,स्त्री-पूर्व पुरुष ,पुरुष भाव को प्राप्त स्त्री और स्त्री शरीरी पुरुष पर हथियार न उठाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हैं |भीष्म के इस संकेत को कृष्ण समझ गए और उन्होंने स्त्री-शरीरी पुरुष शिखन्डी ,जो पूर्व जन्म में अम्बा थी ,को अर्जुन के सामने बैठा दिया |शिखन्डी को देख भीष्म ने अस्त्र-शस्त्र नीचे रख दिया |शिखन्डी के पीछे से अर्जुन ने भीष्म पर बाणों की वर्षा कर दी | इस बाण-वर्षा की परिणति भीष्म की शर-शय्या थी |


भीष्म के हत होने पर सब मिलने गए ,परन्तु शिखन्डी रूपिणी अम्बा उन का सामना करने का साहस न जुटा पायी |वो स्वयं को अपराधी अनुभव करती सच्चाई समझ गयी कि वो भीष्म से असंतुष्ट राजाओं की राजनैतिक प्रतिशोध का साधन बन गयी | जब वो बाद में ,अपराधी भाव से भीष्म के सामने गयी ,तब भीष्म ने उस की शंका का समाधान करते हुए कहा कि वो अपराधी नहीं है |शरीर-अवसान तो प्रकृति का सबसे बड़ा सच है इसका कारण अथवा माध्यम रोग-व्याधि-युद्ध-हत्या कुछ भी हो सकता है |सच देखा जाए तो एक अकिंचन स्त्री को अनजाने अनचाहे दिए गए कष्टों का प्रतिफल ही थी वो शर-शय्या |

11 टिप्‍पणियां:

  1. महाभारत का ज्ञानवर्धक वृतांत, रोचक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत रोचक और ज्ञानवर्द्धक लेख

    जवाब देंहटाएं
  3. एक नया परिप्रेक्ष्य, भुलाये जा चुके पात्रों को देखने का।

    जवाब देंहटाएं
  4. पौराणिक कथाओं का ताज़ा वर्णन भा गया.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर ढंग से जानकारी देती अच्छी पोस्ट

    जवाब देंहटाएं
  7. History revisit..
    Million dollar question is, does it repeat itself?

    जवाब देंहटाएं
  8. अपना किया लौट कर अपने पास आता ही है !
    अच्छी पोस्ट !

    जवाब देंहटाएं