गुरुवार, 6 अगस्त 2020

कब मिलोगे ...

कब मिलोगे ...

पूरे चाँद की चमकती रात अंधेरी लगती है ,
अकसर ख़ामोश सी पूछती है कब मिलोगे !

बिखरी अलकों से पूछती अधखुली पलकें 
तुम्ही बताओ ऐ स्वप्न सच बन कब मिलोगे !

मुझसे दूर जाती नामालूम से लम्हों की कतारें ,
ठिठकती अटकती सी पूछती है कब मिलोगे !

दूर जाते क़दमों की सुनती हूँ जब कोई आहट ,
धड़कना छोड़ कराहती पूछती है कब मिलोगे !

मोती बनने की चाहत में स्वाति नक्षत्र खोजती ,
सीप में समाती हर बून्द पूछती है कब मिलोगे !

कहते हो तुम भोले का महानिवास (श्मशान) मुझे भाता , 
पता है कहीं मिलो न मिलो वहाँ जरूर मिलोगे ! 

यादों की मंजूषा छुपाये कितना शांत है साग़र
सिसकती लहरों से 'निवी' पूछती हैं कब मिलोगे !
                              ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (०८-०८-२०२०) को 'मन का मोल'(चर्चा अंक-३७८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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