मंगलवार, 18 अगस्त 2020

नवगीत : गान नहीं था साधारण ....

परम्परायें रहीं देखतीं

गान नहीं था साधारण !


शिशु अबोध किलक नहीं पाता

अपने सब छूटे जाये

नाव समय भी खूब सजाता

अंधेरा घिरता जाये  

रश्मि किरण भी सच को ढँकती

नियति करे तब निर्धारण !


पूछ रहे सभी कुल का नाम 

मौन सभी सामर्थ्य रही 

गुणी देखते नहीं क्यों काम 

वेदना अविरल हो बही

धधक रही थी उर में ज्वाला

पीर तभी बनती चारण !


बतलाता परिचय जो अपना 

ज्ञान कभी मिलता कैसे

झूठ छुपाये सौ परतों में 

पहुँच गया छल कर जैसे

चक्र फाँस सब मंत्र भूलता

चढ़ा शाप था गुरु कारण !

   .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को    "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द"  (चर्चा अंक-3798)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. निवेदिता जी सुंदर नव गीत बधाई आपको।

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