काश ...
ज़िंदगी किताब होती
थोड़ी सी ही नहीं
बस बेहिसाब होती
बिखर जाते पन्नों को
चुभन के साथ
बाँधे रखती पिन
चुभन में भी अपनी
मिठास रखती
पन्नों का बिखराव
समेट छुपा रखती
काश ! ज़िंदगी सुलझी गणितीय हिसाब होती !!!
काश ...
ज़िंदगी फूलों की
बरसती बरसात होती
सूख जाती पंखुड़ियाँ
खुशबू की फुहार होती
सजाते चटख रंग
तितली के शोख पंख
हथेलियों की रेखाओं में
कर जाते बसेरा
और बस ही जाते
उन ख्वाबो से कच्चे रंग
काश ! ज़िंदगी बेमुरौव्वत लहरों की न धार होती !!!
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
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