मंगलवार, 11 अगस्त 2020

गीत : शर शय्या पर समय विराजे

 ********

राधे - राधे 

********

शर शय्या पर समय विराजे 

टेर रहा हो कहाँ कन्हाई !


बात धर्म की तुम हो करते 

परे सदा अन्याय हटाया 

नहीं शीश को देखा मोहन  

नेह चरण पर था बरसाया  

माया का यूँ चक्र चलाया  

अलख सत्य की सदा जगाई  


मान एक धागे का जाना 

वस्त्रों के तब ढ़ेर लगाये 

नहीं किसी को कुछ सूझा था 

बोल नहीं सच्चाई पाये 

आ पहुँचे तुम भरी सभा में 

द्रुपद सुता की आन बचाई  !


सुनो जरा मेरे मनमोहन

बतला दो गलती तुम सारी 

मैंने कब क्या पाप किया था     

बाणों की शय्या क्यों मेरी  

गंगा तट पर हूँ मैं लेटा  

जैसे हो मेरी अँगनाई !


सुनो पितामह तुम इस सच को

वही काटते जो हैं बोते  

चक्र चले अनगिन कर्मों का 

परिणाम सुखद कब हैं होते 

हर पद इक गरिमा है रखता  

नही राह सच की क्यो भायी !


  .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया। ब्लॉग में सक्रीय हैं यह और भी अच्छी बात।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    जवाब देंहटाएं