जब भी गूँजी कहीं गोली की आवाज़
या बिखरी कहीं किसी दंगे की बात
बेसबब ये बाँहें फ़ैल गयी
चाहत उभरी इस पूरे जहान को
अपने विश्वास के दरकते दामन में
समेट कर सबसे ओझल कर देने की
हर वहशत ,हर दहशत से बचा
अपनी कोख में वापस छुपा लेने की
जब तुम्हे दिखेगी हर तरफ सिर्फ ...
हाँ ! सिर्फ और सिर्फ माँ
एक ऐसी व्याकुल सहमी माँ
जो परेशान है ,तुम्हारी सलामती के लिए
शायद तब तुम्हारे हाथ काँप जायेंगे
कभी बंदूक तो कभी शमशीर उठाने से
माँ नहीं सह सकती तुम्हारी तरफ उठी पलक भी
तुम भी तो हर तरफ दिखती माँ पर
प्रहार करने से पछताओगे
अब भी तो रुको कभी तो सोचो
भागते कदमों की आती आवाजें
लुढ़कते पत्थरों की आती धमक
लहू की बहती अजस्र धार
मैं डर जाती हूँ .... क्यों ?
क्योंकि मैं तो सिर्फ माँ हूँ
तुम्हे सलामत देखना चाहती हूँ !!!
-निवेदिता
डर जायज सा है। सबकी सलामती की दुआ करते हैं।
जवाब देंहटाएंमाँ की सम्वेदना वेदना को नमन!!
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति!!
मार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनिश्छल वात्सल्य तो हमेशा ही संतान के कल्याण प्रति सपर्पित और सुरक्षा के प्रति सशंकित रहता है . आपने इस पीड़ा को सहज शब्द दे दिये . सुँदर.
जवाब देंहटाएंमन में डर तो बना रहता है..विश्वास भी बना रहे..
जवाब देंहटाएंकहां क्या हो जाए ..
जवाब देंहटाएंईश्वर का भरोसा रहता है बस ...
अच्छी अभिव्यक्ति !!
मैं डर जाती हूँ .... क्यों ?
जवाब देंहटाएंक्योंकि मैं तो सिर्फ माँ हूँ
तुम्हे सलामत देखना चाहती हूँ !!!
यह डर स्वाभाविक है।
सादर
क्या कहूं समझ नहीं आया, लेकिन इस कविता में जो है वो दिल तक पहुँच गया...
जवाब देंहटाएंबच्चॊं के लिए ये डर स्वाभाविक है। ...
जवाब देंहटाएंमाँ अपने पंखों से बाहर चाहती तो है उड़ते देखना....पर नज़र से डरती है और मंडराते गलत ख्यालों से
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंदुनिया की हर माँ येही चाहती अहि की उसका बच्चा ठीक रहे ... मार्मिक उदगार लिखे हैं आपने ...
जवाब देंहटाएंमन को छूते शब्द ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती