सोमवार, 20 अगस्त 2012

ऐ जाते हुए लम्हों ......



आज अनायास ही गुजरते जाते लम्हों ने अपने महत्व का एहसास दिला ही दिया | लगता है हम सब ही अपना जीवन एक बँधी-बंधाई लीक पर बिताते चलते हैं | किसी भी पल के औचित्य का या उसकी क्षणभंगुरता का ध्यान रहता ही नहीं | ये बात तो अपने नन्हे-मुन्नों को भी हम सिखाते हैं कि गया हुआ समय वापस नहीं आता , पर क्या हम खुद इस के निहितार्थ को समझ पाये हैं ? पता नहीं क्यों , पर मुझे ऐसा नहीं लगता | हम सामाजिक  पैमानों पर कितने भी सफल अथवा असफल हुए हों पर औरों द्वारा खींची गयी लकीर पर चलना ही जीवन समझते हैं | यहाँ मेरा ये तात्पर्य कतई नहीं है कि हम इन मूल्यों का पालन न करें | मैं तो बस ये जानना चाह रही थी कि क्या हम अपने पूरे जीवन में एक भी सार्थक काम कर पाते हैं ! 

हर पल में हमारी सोच सिर्फ मैं ,मेरा या मेरे लिए के दायरे में ही घूमती रहती है | ये दायरा कभी - कभी इतना छोटा हो जाता है कि सब कुछ सिर्फ स्वार्थ लगता है | ये हमारे स्वार्थी होने को नहीं दर्शाता , क्योंकि अपने दृष्टिकोण के अनुसार हम अपने कर्तव्यों का ही निर्वहन कर रहे होते हैं | अपने  बच्चों , अपने परिवार की खुशियों का ध्यान ही तो रख रहे हैं | 

ये संयुक्त परिवार की हिमायत में नहीं ,अपितु संयुक्त समाज की उम्मीद में सोच रही हूँ | अगर हमारे पडोस में किसी को आवश्यकता है तो हम उम्मीद करते हैं कि वो हमसे कहे और बाद में अपने सहयोग की स्वीकृति की भी चाहत रखते हैं | घर में काम करने वाले सहायकों ,जिनका पूरा-पूरा योगदान रहता है हमारे घर को नित नई चमक देने और उसको बनाये रखने में , उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को अनसुना कर देते हैं | हम अपना सहयोग भी सिर्फ उनको ही देते हैं जिनसे ये अनकही सी उम्मीद हमको रहती है ,कि हमारी जरूरत के समय वो भी हमे सहयोग करेंगे | हमारा ऐसा व्यवहार हमको किसी के सहायक के रूप में न दिखा कर ,ऐसा लगता है हम अपने तथाकथित अच्छे कार्य को बैंक  में जमा कर रहे हैं जो जब भी हमको जरूरत पड़ेगी हम अपने हित में प्रयोग कर लेंगे | 

अपने जीवन को सिर्फ घर से कार्यक्षेत्र और कार्यस्थल से घर में समेट कर ही प्रसन्न हो लेते हैं और अगर मात्र गृहणी हैं तो घर की चारदीवारी की खरोंचों की मरम्मत में ही व्यस्त रहते हैं | ऐसा बिताया गया जीवन वास्तव में क्षणभंगुर ही होता है जिसके अंत के बाद घरवाले भी यांत्रिक रूप से उसके मोक्ष के लिए कर्मकांड कर के भूल जाते हैं | 

हम अगर कोई बहुत बड़ा काम न भी कर पायें ,तब भी कम से कम किसी के लिए कुछ मुस्कराते लम्हों को लाने का प्रयास ही कर लें | किसी के उदास लम्हों में उसके कंधों पर हाथ रख कर उसको अकेलेपन के एहसास से निकालने की पहल कर लें | किसी की बोझिल दिनचर्या को थोड़े से जीवंत पल ही दे लें | बहुत कुछ कहना चाहने वाली खामोश जुबां को कुछ कह पाने का साहस ही दिला लें | अगर ऐसे ही छोटे - छोटे पल अपने जीवन में शामिल करलें ,तो कोई भी डिप्रेशन का शिकार नहीं होगा | इस के लिए कुछ विशेष नहीं करना है बस अपने दायरे में एक छोटी सी सेंध ही लगानी है | सद्प्रयास के द्वारा उन जाते हुए लम्हों को एक हल्की सी  स्मित के साथ विदा करने के लिए इतना सा ही तो करना है ......
                                                                                              -निवेदिता 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर लेख बन पड़ा है , बधाई

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  2. हर पग एक नयापन साधा,
    पाया आधा, भूला आधा।

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  3. मुझे आसानी से उदासी नहीं घेरती...अकसर खुश रहती हूँ....डिप्रेशन भी नहीं.....
    लगता है ठीक से ही जी रही हूँ जीवन
    :-)

    सस्नेह
    अनु

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  4. सार्थक सोच।
    यह नारा लगाना पड़ेगा...मस्त करो तो मस्त रहोगे।:)

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  5. कुछ लम्हे खुशियों के दूसरों पर लुटाना भी जीवन सार्थक करना ही हुआ ...
    सार्थक सोच !

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  6. अपने जीवन को सिर्फ घर से कार्यक्षेत्र और कार्यस्थल से घर में समेट कर ही प्रसन्न हो लेते हैं और अगर मात्र गृहणी हैं तो घर की चारदीवारी की खरोंचों की मरम्मत में ही व्यस्त रहते हैं | ऐसा बिताया गया जीवन वास्तव में क्षणभंगुर ही होता है जिसके अंत के बाद घरवाले भी यांत्रिक रूप से उसके मोक्ष के लिए कर्मकांड कर के भूल जाते हैं | ... कितनी गहरी सच्चाई है !

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  7. सच कह है ... जीवन में यदि किसी एक के चेहरे पे भी मुस्कान ला सके तो जीवन सफल है ... अन्यथा समय तो जाता ही है ...

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  8. सच ही तो है जीवन एमएन बिना किसी अपेकक्षा के यदि एक भी चेहरे पर मुस्कान ला सकें हमें तभी जीवन सफल है गहन भाव अभिव्यक्ति

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  9. sahi kaha aapne....isi me sacchi khushi milti hai.

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  10. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... सार्थकता लिए सटीक प्रस्‍तुति

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