"रिश्ते" इतने छोटे से शब्द में जैसे पूरी दुनिया समा जाती हैं | हम पूरा जीवन बिता देते हैं ,इन अबूझ से रिश्तों की तलाश और समझ में | कभी अनजाने से रिश्तों में पूरी दुनिया समा जाती है तो कभी जाने पहचाने रिश्ते हाथ छुड़ा आगे बढ़ जाते हैं | जिन रिश्तों को ओस की बूंदों जैसे संजोना चाहते हैं ,प्रयास करते हैं पता नहीं कब कैसे अजनबी बन जाते हैं और जिन रिश्तों को बेपरवाही से देखतें हैं वो सबसे सुरीला साज़ बन जाते हैं !
रिश्तों को समेटने -सहेजने का कोई निश्चित फार्मूला आज तक कोई भी नहीं बना पाया | पल-पल राह देखते हैं एक नया आकार देने को एक नई पहचान देने को ,पर जब वो मिल जाते हैं सहेज पाना इतना मुश्किल क्यों बन जाता है ! इस मुश्किल को बढ़ाने में सबसे बड़ा कारण बातें ही होतीं हैं .... कभी खुद की तो कभी दूसरों की | इन बातों की परत लगा दें या गाँठ बना लें ,यहीं इस समस्या का मूल निवास रहता है | इस परत अथवा गाँठ में पूरी सतह नहीं दिखाई पडती ... कुछ न कुछ अनदेखा अजनबी सा रह जाता है जो रिश्तों में आती दूरी का कारक बनता जाता है |
कभी-कभी रिश्तों में इस हद तक दूरियाँ आ जाती हैं कि चाह कर भी उसको सुधार नहीं पाते | रिश्तों को तोड़ने की शुरुआत गलतफ़हमी से ही होती है | जैसे-जैसे समय बीतता जाता है और चीज़ें जुडती जातीं हैं | जिन रिश्तों की तलाश एक नाज़ुक सा रेशमी ख़याल होती है ,उन की परिणति ऐसी तो नहीं होनी चाहिए !
तमाम उम्र गवाँ दी जिन की तलाश में
बस इक पलक झपकी और बिखर गये
ये कैसे नातें ,ये कैसी बातें कब - कैसे
वक्त की मुट्ठी से रेत सी फिसल गयी
-निवेदिता
bahut sunder ...
जवाब देंहटाएंye rishte bahut rulate hain ...
जवाब देंहटाएंरिश्तों को मुखर करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंरिश्ते वास्तव में एक बहुत नाज़ुक डोर की तरह ही होते हैं जिसे थामे रखना हम पर ही निर्भर करता है।
जवाब देंहटाएं-----
कल 02/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख.... रिश्तों के क्लिष्ट साम्राज्य की सरल व्याख्या !
जवाब देंहटाएंप्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएं'ये कैसे नातें ,ये कैसी बातें...'
जवाब देंहटाएंकौन जाने!
bahut gahen vichaarottejak lekh...rishton ko samvaad se aur pyar se sambhala aur savaara ja sakta hai.
जवाब देंहटाएंहर एक रिश्ते में व्यक्तित्वों की गूढ़ता छिपी होती है, हर एक में मेहनत करने से अच्छा है कि स्वयं को सुधार विया जाये।
जवाब देंहटाएंदोस्तों आप सब का आभार !
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी , आप की सोच अच्छी है ,परन्तु तब क्या किया जाये जब औरों के लिये खुद को सुधारने के प्रयास में हमारे में जो हमारा स्व है वही विलुप्त हो जाये :)
बहुत सही लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंइंसान रिश्तों की भूल भुलैया में खोया रहता है।
जवाब देंहटाएंऔर यह भूल भुलैया इंसान को अच्छा भी लगता है।
सुंदर प्रस्तुति।
हम भी आज रिश्तों पैर ही एक रचना पोस्ट किये हैं अभी ...........बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंरिश्ते ही हैं..जो जीना सिखाते हैं
जवाब देंहटाएंअनुपम, सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबधाई !
मेरे "मचान" पर भी आइये !
||रेत आप हथेलियों पर चाहे जितनी देर रखो
जवाब देंहटाएंदिक्कतें सर तब उठाती मुट्ठियाँ जब बांधें हम||
आदरणीय निवेदिता जी,
सार्थक चिंतन करती पोस्ट के लिये सादर बधाई स्वीकारें....
rishte to rishte hote hain
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी
जवाब देंहटाएंरिश्ते बहुत नाज़ुक होते है और इन्हें बच्चो की तरह ही पालना चाहिए . आपने बहुत ही अच्छी तरह से रिश्तों की नाजुकता को दर्शाया है ... और अंत में छोटी सी नज़्म भी कुछ कह रही है .
बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
रिश्तों से जिन्दगी को उर्जा मिलती है.
जवाब देंहटाएंnice one
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़एं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंरिश्तों में इमानदारी उन्हें लंबे समय तक साथ रखती है ... वर्ना रिश्ते रेत की तरह फिसल जाते हैं ... अच्छी पोस्ट है ...
जवाब देंहटाएं