एक टूटी हुई शाख ने ,
इक रोज़ कहा वृक्ष से ...
करना ही था अलग ,
क्यों जोड़ा मुझे
वृक्ष की पहचान से ?
हटाने से पहले ,
दे दी होती मुझ में भी
जड़ की सहायक सी श्वांस !
अलग होने का नहीं गम ,
बदले मैंने भी कई रंग
कभी पूजित हुआ ,
कभी तिरस्कृत
और कभी बन गया,
अंधे की लाठी समान !
कभी निर्बल का सहारा,
कभी अत्याचारी का बल
देखे मैंने भी कई रंग !
अगर देते रहते मुझे ,
यों ही जीवन - बल
मै भी छू लेता ,
आसमां की बुलंदी
लहराता - इठलाता
भोग पाता , जी लेता
अपना ये प्यारा सा जीवन !!!
निवेदिता
बहुत ही बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबूँद की कहानी याद आ गयी। उसको भी बादल छोड़ना पड़ता है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना के लिए बधाई |इसी तरह लिखती रहिये |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही प्यारी कविता !इतनी खूबसूरत एवं कोमल सी रचना के लिये बहुत-बहुत बधाई एवं होली की ढेर सारी शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा दी ,यशवन्त ,प्रवीण जी ,उडन तश्तरी जी ,सन्जय -आप सब के समर्थन के लिये आभारी हूं !!!
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