कुछ दिनों पहले हम लोग इलाहाबाद गए थे | मित्रों के साथ कई स्थानों पर घूमने भी गये | हर स्थान का अपना अलग ही महत्व था ....... वो सब फिर कभी साझा करूंगी | आज तो संगम यात्रा के अनुभव बांटने आयी हूँ |
विद्यालय प्रांगण ,छात्रावास ,मेस इत्यादि कई स्थानों पर विशुद्ध ऑक्सीजन पा लेने के बाद हम सब प्रतिष्ठान की ही बस में संगम पहुँचे | मैं नदी से बहुत डरती हूँ ,अत: नाव में संगम तक जाने से बचने के बहाने तलाशती इधर-उधर देख रही थी कि अचानक से बढ़ते कदमों को किसी ने थाम लिया | चौंक कर जब देखा तो एक छोटा सा बच्चा " भोलेबाबा शंकर " का रूप धरे हमें रोक कर खड़ा था | पहले तो उसकी मासूम सी शक्ल और हाव-भाव पर बहुत स्नेह आया | पलक झपकते ही उसने अपना छिपा व्यापारी रूप दिखाना शुरू कर दिया ............."फोटो खिचवाने का दस रुपिया लेगा " ..... तब तक ऐसे कई बच्चे वहां आ गये | उन बच्चों में कुछ उससे बड़े थे तो कुछ उससे छोटे भी थे ,जो अभी भोले बाबा बनना सीख रहे थे | उस पहले वाले बच्चे ने बाकी सब बच्चों को भगा दिया ...."मेरे गिराक हैं " ! फिर उसने अपनी कलाकारी दिखानी शुरू की .... फोटो खींचने के पहले ही "दस रुपिया " की रट लगाने लगा | इस पूरे समय में उसका पिता ढ़ोलक ले कर उसके साथ ही था और बच्चे को निर्देश देता जा रहा था | जैसे हम सब आगे बढने को हुए , उस बच्चे के पिता ने कुछ इशारा सा उसको किया और वो बच्चा हमारे एक साथी के पैरों को पकड़ कर झूल गया और पैसों की मांग के साथ | किसी भी तरह जब वो छोड़ने को तैयार नहीं हुआ ,तब उन साथी ने पुलिस से पकड़वाने का डर दिखाया तब कहीं हम आगे बढ़ पाये !
इस पूरे प्रसंग में बच्चा तो अपनी बालसुलभ चंचलता की वजह से आकर्षित करता रहा ,पर कहीं कुछ सोचने पर भी विवश भी कर गया | उसके पिता के प्रति आक्रोश भी बहुत हुआ ,जिसने अपने इतने छोटे से बच्चे को ऐसा करने पर विवश किया | उस छोटे से बच्चे का बचपना तो कहीं खो ही गया | वो एक ऐसे देवता का रूप धरे सबको अपना आशीष दे रहा था ,जिनका वो सही तरीके से नाम भी नहीं ले पा रहा था " भोये बाबा " कह रहा था ! बाल शोषण का ये एक अनूठा रूप देखने को मिला था | हम सब कुछ देर उस बच्चे को ही देखते रहे ..... बच्चा कुछ खा रहा था ,तभी कुछ लोग आ गये और उस बच्चे के पिता ने उसके हाथों से खाना ले कर फिर उसको दौड़ा दिया एक नये फोटो सेशन के लिए | एक बार फिर उसने अपनी हरकतें करनी शुरू कर दी थीं ,बस बीच-बीच में अपने छोड़े हुए खाने की तरफ निगाह डाल लेता था !हम सब बस हतप्रभ से उसको देखते ही रह गये |
आज हम किसी राजनेता पर लगे थप्पड़ पर बहस कर रहे हैं ,अथवा सचिन के चिरप्रतीक्षित शतक की राह में हसरत से निगाहें बिछाए हुए हैं | ऐसे में कहीं एक छोटा सा लम्हा भी इन शोषित बच्चों की समस्या के समाधान के लिए हम क्यों नहीं दे पा रहे हैं ? घरों में तो हम बच्चों से काम न करवा कर बाल-श्रम से तो बच जाते हैं ,परन्तु देव-स्थलों पर देवता बन आशीष देते इन बच्चों के बचाने के लिए क्या किया जा सकता है इस पर मनन करने की आवश्यकता है ..........
kamane ka jariya hai yah ... maine bhi dekha hai
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर एवं तथ्यपूर्ण आलेख. हमें भी सोचना होगा हम ऐसे प्रदर्शन का प्रतिकार करे. आज गली चौराहे पर बाल्टी में तेल और लोहे की शनि मूर्ती डाले बच्चे मिल जायेगे जो शनि की महिमा नहीं जानते. ये सब हमारे देश में होता है धार्मिकता के नाम पर .एक सोचनीय विषय उठाया है आपने बधाई
जवाब देंहटाएंbilkul sahii likhaa haen yae sab bahut aam haen utna hi jitna tv serial me kaam kartae bachchae
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक प्रसंग है...सोचनीय भी
जवाब देंहटाएंनीरज
आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ केवल घरों में रह रहे बच्चों से तो हम बाल श्रम करवाने से बच जाते हैं मगर बाचे देश का भविष्य हैं और उस भविषय को सवारने के लिए केवल इतना किया जाना प्रयाप्त नहीं जरूरत है हर वर्ग के बाचे को बाल श्रम से बचाने की बहुत ही बढ़िया सार्थक एवं मार्मिक आलेख समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर शाद आपके और मेरे विचार मिल जाएँ .... http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंबच्चों को जब भी उत्श्रंखल भाव से व्यवहार करते नहीं देखता हूँ तो माथा ठनक जाता है।
जवाब देंहटाएंऐसे नज़ारे हर ट्राफिक लाइट पर देखने को मिलते है .....सटीक लेख
जवाब देंहटाएंपर आज तक कोई कुछ नहीं कर पाया ...आभार
आपने मुद्दा तो बहुत अच्छा उठाया है मगर कहाँ नही हो रहा बाल शोषण ………ये तो फिर भी सिर्फ़ अपने पेट भरने के लिये ये सब कर रहे है मगर आज देखिये टीवी मे सीरियल मे जगह जगह सिर्फ़ अपनी मह्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये माता पिता ही अपने बच्चो को अग्रसित कर रहे है जो उम्र उनके खेलने खाने की है उसमे उन्हे पैसे और शोहरत के लालच मे झोंका जा रहा है वो भी तो बाल शोषण है…………कहाँ तक गिनाया जाये हर जगह यही आलम है और हम सभी सब देख कर भी अनदेखा कर देते हैं।
जवाब देंहटाएं..यह तो बहुत गलत बात है.
जवाब देंहटाएंहरेक क्षेत्र में बच्चों का शोषण हो रहा है...बहुत मर्मस्पर्शी और विचारणीय पोस्ट..
जवाब देंहटाएंhttp://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/11/blog-post.html
गहन चिंतन.....
जवाब देंहटाएंसच है ...यह भी शोषण का ही एक रूप है....
जवाब देंहटाएंबहुत ही चिंताजनक स्थिति है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक मुद्दा उठाया आपने.
जवाब देंहटाएंबाल शोषण बहुत से रूपों में है समाज में.
ऐसे नज़ारे अक्सर देखने को मिल जाते है, ह्रदय पसीज जाता है पर क्या करे अकेला चना भाड़ तो फोड़ नहीं सकता|
जवाब देंहटाएंyahi ho sakta hai ki aisi bacchon ke abhibhavkon ko samjhaya jaye. vo dharam k naam par vyapar chala rahe hain to dharam k naam par hi unhe dara kar sahi marg dikhaya jaye.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
ब्लॉग वापसी और संगम में स्नान के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंगाहे बेगाहे ऐसे दृश्य तकरीबन हर जगह दिख ही जाते हैं।
जवाब देंहटाएंहमारे ही शहर में आठ दस साल के बच्चे शनिवार को एक लोटे में तेल लेकर शनिदेव के नाम पर घर घर जाकर पैसे मांगने और आशीर्वाद देने का काम करते हैं.....
आपने अपनी धार्मिक यात्रा के दौरान के इस वाक्ये को प्रस्तुत कर बाल शोषण के गंभीर विषय पर चिंतन का अवसर दिया..... सच में यह मुद्दा किसी दूसरे मुद्दों से कमतर नहीं हैं... क्योंकि बच्चो को देश का भविष्य कहा जाता है... पर अफसोस साल में सिर्फ एक दिन 14 नवम्बर को ही 'बाल दिवस' का आयोजन कर बाल शोषण के खिलाफ बडे बडे आयोजन-वर्कशाप कर हम अपने कर्तव्य को पूरा मान लेते हैं और ऐसे बच्चे साल भर शोषण के शिकार होते रहते हैं।
सच है। यह शोषण ही है। देख कर अंधे बने है सभी।
जवाब देंहटाएं"सोच" देती है दिशा..... और,
जवाब देंहटाएं"समझ" दिखाता है रास्ता --- !!
पर जब किसी व्यक्ति का 'विचार'...
शुन्यता की स्थिति में पहुँच जाए....
तो फिर समझदारी से कैसा नाता ?
-- या फिर उस से कैसे रहे वास्ता ??
तब उन गलियारों से हो कर ......
निकलता है ----- ऐसा ही हर रास्ता !!
यह पेट की भूख भी अजब की होवे है ....
तनहा सा मन.... ना जागे है, ना सोवे है;
लगावे है ऐसी आग.... कि "DK भाग" !
DK भाग...भाग...भाग ! ... DK भाग !!