मन बावरा है न
आज चाँद बनने को मचल पड़ा
मानो माँ की उंगली थामे
उचका था बचपन चाँद पकड़ने को !
चाँद बनना है पर वह
आसमान में चमकने वाला नहीं
न ही पानी से भरे थाल में लहराता !
चाँद बनना है पर वही
चातक की आँखों में चमकता आस बन
शिशु की किलकारी में किलकता मामा बन !
मेरे चाँद से मन को पाने के लिये
मत सजाना प्रयोगशाला
नहीं खोजना गड्ढ़े मन की गहराई में !
बस जगा लेना सम्वेदनाओं को
मेरा ये चाँद विहँस बस जायेगा
चमकता ही रहेगा तुम्हारे आनन पर !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।