शनिवार, 26 सितंबर 2020

अभिव्यक्ति की आज़ादी

 अभिव्यक्ति की आज़ादी 


अभिव्यक्ति और आज़ादी ,ये दोनों ही शब्द स्वयं में बेहद सशक्त भाव समेटे हुए हैं और जब मिल कर आ जाते हैं तब तो इनकी प्रखरता और भी बढ़ जाती है । पहले इनकी अलग - अलग विवेचना कर लेते हैं।


प्रत्येक पल इंसानी मस्तिष्क में जाने अथवा अनजाने भी ,विचारों का झंझावात चलता रहता है । ये भाव स्वयं में हर्ष ,विषाद ,पीड़ा ,आक्रोश ,विवशता सबसे आलोड़ित होते रहते हैं । स्वयं को भाषा अथवा हाव - भाव के द्वारा अपने मनोभावों को जब तक किसी पर जाहिर नहीं कर लेता है ,तब तक मन में अजीब सी उलझन मची रहती है । कभी - कभी मन के संत्रास और उल्लास को किसी के समक्ष उलीचने से भी ,उस का समाधान नहीं मिलता है परंतु मन स्वयं को बहुत हल्का अनुभव करता है । साधारण शब्दों में कहें तो बस यही प्रगटीकरण ही #अभिव्यक्ति है । 


पशु पक्षी हों अथवा मानव ,कोई भी जीवधारी कभी भी बँधना नहीं चाहता है । किसी भी प्रकार का बन्धन उसके सहज प्रवाह को बाधित करता है । वह सहज सतत प्रवहमान रहना चाहता है ,बगैर किसी रोक टोक के । मानसिक ,शारीरिक ,आर्थिक ,सामाजिक जैसे किसी भी प्रकार के बंधन से मुक्त होना ही #आज़ादी कही जाती है ।


मन जब इन दोनों को भिन्न धरातल पर पा जाता है तब एक स्वतः स्फूर्त विचार पनपता है और इन दोनों को एक साथ कर देता है और तब उभरती है चाहत इन दोनों  को एक साथ  #अभिव्यक्ति_की_आज़ादी के रूप में पाने की । ये दोनों अलग - अलग तो सम्हले रहते हैं परंतु साथ में रखने पर संतुलन साधना आवश्यक हो जाता है । हम सभी विवेक सम्पन्न और विचारशील हैं अपने भावों को अभिव्यक्त करना चाहते हैं और करते भी हैं ,परन्तु विशेष ध्यान देना चाहिए कि हमारी आज़ाद अभिव्यक्ति किसी दूसरे की आज़ादी का हनन नहीं कर रही हो । हमारी अभिव्यक्ति इतनी संतुलित होनी चाहिये कि वह यदि किसी अन्य की तरफ इंगित करती भी है तो वह कभी भी उसकी कमी बताती न लगे ,अपितु त्रुटि दिखाती और सौहार्दपूर्ण समाधान भी बता रही हो । यदि इस संतुलन के साथ हो तब ही अभिव्यक्ति की आज़ादी का स्वागत है ,जो कि अनिवार्य भी है ।

       .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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