घुटी घुटी सी साँसों में साँस भरती
बेबसी से पलके खोलती मुंदती
हिचकियों में बेहिचक खटखटाती
दम तोड़ती हैं ये खामोश औरतें !
आसमान छूते कहकहे
दम तोड़ते अबोली सिसकी पर
आसमान छूने को उचकती
बिना रीढ़ की ये लुढ़कती औरतें !
ये औरतें न बस औरतें ही हैं
बेबात ही हँस के रो देती हैं
सब के आँसू दुलार से सुखा
आँचल अपना भिगोती ये औरतें !
खुशियों से चमकती सी आँखें देख
सबकी खुशी में तृप्त होती ये औरतें
सबके दिल का आईना चमकाती
दम तोड़ती सिसकियों सी लरजती ये औरतें !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएं