शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

पत्र मुहावरों से भरा

 


ऐ #कलम_के_धनी मेरे मन !

अकसर ही तुमको बोल देती थी कि #तीन_पाँच_मत_करो और तुम जो बोलनेवाले होते थे उसको #गूंगे_के_गुड़ जैसा अनुभव करते #चुप्पी_साध_लेते थे और मेरे मन के बिखराव को अपने #अंक_में_समेट मुस्करा देते । मैं तो बहुत बाद में समझ पायी थी कि इस #रंग_बदलती_दुनिया में इस तरह #अक्ल_के_घोड़े_दौड़ाना या #अरण्य_रूदन करना व्यर्थ है क्योंकि सभी #अपनी_खिचड़ी_अलग_पकाना चाहते हैं । यह समझने में मुझे बहुत समय लग गया कि उनकी मुँहदेखी करती बातों के पीछे उनका मतलब सिर्फ #अपना_उल्लू_सीधा_करना ही था । मतलब निकल जाने के बाद उनकी #अंगारे_उगलती बातें सुन कर मेरी समझ तो जैसे #घास_चरने ही चली जाती थी ।


परन्तु जानते हो मैं भी बिलकुल #अड़ियल_टट्टू की तरह #अंगारों_पर_पैर_रखते_हुए ही फिर उनको समझाने का प्रयास करने लगती हूँ ... इस पूरी रस्साकशी में मुझे #अँगूठी_में_नगीने सरीखे साथी मिले ,जिन्होंने #अंधा_बनाने वालों के समक्ष मुझ #अल्लाह_मियाँ_की_गाय सरीखी कलम का साथ दे कर उनके लिये #अंगूर_खट्टे कर दिये । 


और पता है दोस्त ! इन चन्द नगीनों का साथ मेरा मनोबल इतना बढ़ा गया कि #अपने_अड्डे_पर_चहकने वाले #मुँह_की_खाने लगे और मैं #अपनी_खाल_में_मस्त रहने लगी । अब न जाने कितनी अठखेलियाँ सूझती हैं कि जब जहाँ का  #अन्न_जल_बदा_होगा वहीं हम #अर्श_से_फर्श तक का जीवन जियेंगे । #आग_पर_तेल_छिड़कने वाले लोगों से दूर हो उनका साथ ही करना चाहिये जिनकी प्रवृत्ति ही #आग_पर_पानी_डालने की हो ,बाकी #आँख_पर_पड़ा_पर्दा तो समय हटा ही देता है ।


अब तक के जीवन में इतना तो समझ ही गयी हूँ कि कितना भी #आटा_गीला हो जाये #आँखें_तरेरने वालों के न सोच कर #आकाश_पाताल एक कर सब कुछ #आँचल_में_बाँधना ही श्रेयस्कर है । #"आस्तीन में साँप" को पालना तो #"आग पानी को साथ" रखने जैसा ही है ,जो ध्यान न देने पर #"आठ - आठ आँसू" रोना पड़ता है ।


#"इधर -उधर की बात" करने से तो अच्छा है #"इतिश्री" करना ,क्योंकि #"इज्जत उतारना" तो सब जानते हैं ,परन्तु यह तो हमको ही बताना होगा कि #"इन तिलों में तेल" नहीं जिससे वो #"अपना उल्लू सीधा" कर सकेंगे ।


अब सोचती हूँ कि तुमसे ही #"दिल हल्का" कर लिया करूँगी और सुनो ! तुम #"ईद का चाँद" मत बन जाना । तुमसे बातें करते ही #"उन्नीस - बीस करती ज़िंदगी के #"काले बादल" न जाने कहाँ #"उड़नछू" हो जाते हैं । 


"राम - सलाम" करती रहना और मेरे मनोबल की रीति पड़ती "गागर में सागर" भर जाना ... तुम्हारी "किताबी कीड़ा" 'निवी'

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