गुरुवार, 8 अगस्त 2019

लघुकथा : उड़ान

लघुकथा : उड़ान

सब काम समेटते हुए अनायास ही अन्विता की निगाहें  उड़ते हुए पर्दे से अंदर की तरफ चली गई । निरन्तर आनेवाली उबासियाँ को सायास रोकता हुआ अनिरुद्ध अपना सामान समेट कर बैग में रख रहा था । सच बहुत ध्यान से सामान रखना होता है । अगर एक भी चीज छूट गयी तब बेवजह ही परेशान होंगे दिनभर । मुँहअंधेरे ही निकलते हैं घर से तब कहीं समय पर ऑफिस पहुँच पाते हैं ,और ढ़लती हुई शाम के साथ ही फिर ट्रेन में तब ऊंघती हुई रात के साथ घर वापस आते हैं । इतनी परेशानी उठा कर रोज का आना-जाना करते हैं ,पर तब भी कहते हैं ,"मेरे लिये तुम कितना परेशान होती हो । तुम्हारी नींद भी तो पूरी नहीं हो पाती है । ऐसा करो तुम मेरा खाना रख कर सो जाया करो ।मेरे पास तो चाभी रहती है है ,मैं अंदर आ जाऊँगा । और ये जो सुबह - सुबह उठ कर नाश्ता खाना बनाने लग जाती हो ,उसको भी रात में ही बना कर रख दिया करो । तुम बीमार पड़ गयी तब तुम्हारे साथ - साथ ये घर भी बीमार पड़ जायेगा ।"

सच जीवन भी कितना संघर्ष करवाता है अपनों के सुकून के लिये । बच्चे भी तो बड़ी कक्षाओं में आ गए हैं । हर दो - तीन साल बाद होनेवाले स्थानांतरण पर स्कूल बदलने से पढ़ाई पर भी असर पड़ने लगा था ,तभी तो अपनों के हिस्से में सारे सुख और सुकून संजोने की चाहत में अनिरुद्ध ने सारे संघर्ष अपने हिस्से कर लिए थे । उनके हर दिन की भागदौड़ देख लगता है कि रोज वो एक तिनका लाते हैं और हम सब के घोंसले को अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की मजबूती से बाँधे रहते हैं । हर दिन का संघर्ष एक तिनका ही तो है ।

एक नई ऊर्जा से साँसें भरती हुई अन्विता भी सुबह के इंतजार में अनिरुद्ध की ही कही हुई बात को याद करने लगी कि परिंदे अपनी चोंच में  घोंसला लेकर नहीं उड़ सकते ,पर चोंच में दबा कर लाये हुए तिनकों से घोंसले जरूर बना सकते हैं । ... निवेदिता

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-08-2019) को "दिया तिरंगा गाड़" (चर्चा अंक- 3423) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

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