मंगलवार, 27 अगस्त 2019

लघुकथा : अवकाश अपेक्षाओं से

लघुकथा : अवकाश अपेक्षाओं से

अन्विता अपने प्रोजेक्ट के लिए तरह - तरह की वनस्पतियाँ एकत्र करने बोटैनिकल गार्डन में आई थी। रह - रह कर आनेवाली खिलखिलाहट अनायस ही उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी । पहले तो उसने उस तरफ से ध्यान हटाने का प्रयास किया । परन्तु जब गानों की भी बरसात होने लगी वो भी कभी सुर में तो कभी बेसुरे जैसे उन बोलों को एक नई ही धुन दे दी गयी हो ,तब उससे न रुक गया और वह उन आवाजों वाले झुरमुट की तरफ बढ़ चली ।

उस झुरमुट में झाँकते ही वह चौंक गयी । महिलाओं की टोली वहाँ इकट्ठा थी और अपनी ही मस्ती में झूम रही थी । सभी महिलाएं पचास - पचपन से ऊपर की आयु की थीं । सब मन की रौ में इतनी मगन थीं कि जैसे मस्ती की ,मनमर्ज़ियों की अंताक्षरी खेल रहीं थीं ।कोई " मोहे पनघट पे ... " नृत्य करने को कह रही थी तो दूसरी उसको बोल रही थी ,"मैं तो आप जैसा कोई .... पर ही नाचूँगी ।" जो नाचने को तैयार खड़ी थी उसने अपनी कमर पर बेल्ट लगा रखी थी ,शायद उनको पीठ की समस्या थी ,पर उत्साह से भरपूर थी ।

उस झुरमुट की मोहकता ने उधर से गुजरते हुए एक जोड़े के कदमों को जैसे थाम लिया ,पर उनका संकोच उन्हें तसवीरें लेने से रोक रहा था । उन महिलाओं में से एक कि निगाह उन पर पड़ी तो वो उठ आयी और उस जोड़े की कई तस्वीरें ले लीं ।

अन्विता को भी उन महिलाओं ने अपनी मस्ती में शामिल कर लिया । उठते - उठते अन्विता पूछ बैठी ," आप सब की आयु वर्ग में तो अधिकतर थक कर बीमारियों की चर्चा करते रहते हैं या फिर अपनी बहुओ की बुराई । आप की इस खुशी का कारण क्या है ?" उनमें से एक बोली ," थकना या बीमारियों के बारे में क्या सोचना । जन्म से ही सबके बारे में ही तो हम सब सोचते रहते हैं । कभी जिम्मेदारी याद आती है ,तो कभी परिवार, समाज या व्यवसाय की चुनौतियाँ । लगता था कि हम जन्म ही लेते हैं मरने के लिए । शरीर है तो कुछ न कुछ तो लगा ही रहेगा । अब हमने सभी जिम्मेदारियों और सबकी अपेक्षाओं से "अवकाश" ले लिया है और जिंदगी को सही अर्थों में जीने की कोशिश कर रहे हैं ।" .... निवेदिता

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