ये रिश्ते ,ये जिंदगी
सच ....
कितने रंग दिखाते
और हाँ !
कभी न कभी
रंग भर के भी सिखाते हैं
एक रिश्ता माँ पिता का
पाया जन्म की
पहली साँस से
एक रिश्ता संतति का
पाया उनके जन्म की
पहली साँस से
सच .....
हर रिश्ते की
अपनी सीमा है
और अपनी ही गरिमा भी
तब भी ....
कैसी तो चाहतें
जन्म लेती हैं
और
तोड़ती भी है दम
गलती कुछ तो
अपनी इन चाहतों की भी होगी
पहले रिश्ते को
याद रखा
एक आपदा संतुलन जैसे
तो देखो न
दूजे को माना
अपने कभी आने वाले
बुढ़ापे की लाठी
शायद कुछ बातें सँवर जाती
अधिक नहीं बस इतना सा कर पाते
रिश्ते तो दोनों ही रहते
बस अपनी इन दोनों ही
चाहतों को बना लेते
किस्मत उन
अनमोल से रिश्तों की ....... निवेदिता
अच्छी कविता। शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंरिश्तों में समय के साथ बहुत कुछ बदलाव आ ही जाता है .. एक सा कुछ नहीं संसार में ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता , संवेदनयुक्त , शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार !!!
हटाएंआभार !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और प्रभावी रचना की प्रस्तुति। आपका ब्लाग तो काफी पुराना है। इस पर पोस्ट भी अच्छी खासी हैं। इस पर एडसेंस सर्विस के लिए प्रयास करें। यदि आप इस दिशा में प्रयास करेंगीं तो आपको ब्लागिंग के बारे में काफी कुछ सीखना समझना पड़ेगा। पर यह कठिन है।
जवाब देंहटाएंसमय के साथ साथ कभी कभी रिश्ते भी हाथ से फिसल जाते हैं..
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