कुछ लम्हे यूँ ही चुरा लूँ वक़्त से
कभी साज़ से कभी आवाज़ से
कहीं रंगों सी रंगीन खिले चमक
कहीं बच्चों के खिलौनों सी हो
मासूम छुवन .......
तपती दुपहरी में अल्हण सी थिरक
झूमें लरजते बादलों की धड़कन
बादलों में खिले न खिले इंद्रधनुष
मन में कहीं कम न पड़े ये रसरंग
छुम छन्नन्न छुम छन्नन्न ..... निवेदिता
जय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा....
दिनांक 15/05/2016 को...
चर्चा मंच पर...
आप भी चर्चा में सादर आमंत्रित हैं।
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंSo beautiful. ......tinker....tinker. ..
जवाब देंहटाएंSo beautiful. ......tinker....tinker. ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंhttp://onkarkedia.blogspot.in/
बहुत सुन्दर
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