सच कहा तुमने बहुत सोचती हूँ पर ये भी कभी सोच कर देखना सोचती हूँ इतना तभी तो अभी तक धड़कनों ने याद रखा है धड़कना और हाँ ! याद रखना ये जो मेरी सोच है यही तो हूँ मैं पूरी की पूरी आत्मा तक मैं ..... बताओ न क्या कभी कर पाओगे स्वीकार मुझको जैसी हूँ मैं वैसी ही मुझको ..... निवेदिता
धन्यवाद ... सस्नेह
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