26 / 04 / 2016
सच कहा तुमने
बहुत सोचती हूँ
पर ये भी कभी
सोच कर देखना
सोचती हूँ इतना
तभी तो अभी तक
धड़कनों ने
याद रखा है धड़कना
और हाँ !
याद रखना
ये जो मेरी सोच है
यही तो हूँ मैं
पूरी की पूरी
आत्मा तक
मैं .....
बताओ न
क्या कभी कर पाओगे
स्वीकार मुझको
जैसी हूँ मैं
वैसी ही मुझको ..... निवेदिता
धन्यवाद ... सस्नेह
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