ये चाहतें न ....
सच बड़ी ही अजीब होती हैं
बेमुरव्वत सी कभी भी कहीं भी
सरगोशियों में दामन थाम
कदमों को उलझा देती है
आज भी ,देखो न ....
कैसी अजीब सी चाहत
पलकें अधमुंदी रखे
जाने कैसे तो रंग बिखेर
टकटकी लगाये है ....
उँगलियों की गुंजल बनाए
देख रही है मुझको
पता है क्या थामना चाहती है
उस गुंजल में ....
जियादा कुछ नहीं बस एक छाता
जो भरा हो सिर्फ और सिर्फ विश्वास से
जानती हूँ ,ये छाता
शायद ......
बचा न पायेगा मुझको
जिंदगी की कश्मकश भरी धूप से
और न ही उम्मीदों की बारिश से
पर ..... तब भी .... शायद .....
नहीं .... यकीनन ....
एक हौसला तो आ ही जायेगा
जिंदगी की आँखों में आँखे डाल
धड़कनों में साँस भर जी लेने का ..... निवेदिता
bina sheershak ..Vada jeene ka ...badhiya
जवाब देंहटाएंहाँ दी ....
हटाएंकभी कभी जिंदगी बिना शीर्षक के भी आ जाती है न ....