गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

पुलकित प्रमुदित मन साथी मधुमास बना ....



छल -छल करती 
सरिता कह लो 
या निर्झर बहते जाते 
नीर नयन से
तरल मन अवसाद सा 
बहा अंतर्मन से
कूल दुकूल बन 
किसी कोर अटक रहे
पलकें रूखी रेत संजोये 
तीखे कंटक सी चुभी
ओस का दामन गह 
संध्या गुनगुनायी थी
नमित थकित पत्र 
तरु का भाल बना
धूमिल अवसाद न समझ
इस पल को
आने वाली चन्द्रकिरण का
हिंडोला बन
शुक्र तारे की खनक झनक सा
उजास भरा
पुलकित प्रमुदित मन साथी
मधुमास बना .........  निवेदिता

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