सरिता कह लो
या निर्झर बहते जाते
नीर नयन से
तरल मन अवसाद सा
तरल मन अवसाद सा
बहा अंतर्मन से
कूल दुकूल बन
कूल दुकूल बन
किसी कोर अटक रहे
पलकें रूखी रेत संजोये
पलकें रूखी रेत संजोये
तीखे कंटक सी चुभी
ओस का दामन गह
ओस का दामन गह
संध्या गुनगुनायी थी
नमित थकित पत्र
नमित थकित पत्र
तरु का भाल बना
धूमिल अवसाद न समझ
इस पल को
आने वाली चन्द्रकिरण का
हिंडोला बन
शुक्र तारे की खनक झनक सा
उजास भरा
पुलकित प्रमुदित मन साथी
मधुमास बना ......... निवेदिता
धूमिल अवसाद न समझ
इस पल को
आने वाली चन्द्रकिरण का
हिंडोला बन
शुक्र तारे की खनक झनक सा
उजास भरा
पुलकित प्रमुदित मन साथी
मधुमास बना ......... निवेदिता
काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया। कविता पढ़कर अच्छा लगा। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआभार :)
हटाएंआभार :)
जवाब देंहटाएंसुंदर और भाव विभोर कर देने वाली पंक्तियाँ लिखी है आपने.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
sundar kavita :)
जवाब देंहटाएं