"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
बेहद ख़ूबसूरत रचना ...
बिल्कुल जी...
बेहद ख़ूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल जी...
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