शब्दों की भीड़ में
एक अक्षर तन्हा …
रिश्तों की भीड़ में
एक मन तन्हा ....
सुरों की सरगम में
एक सुर तन्हा .....
खिलखिलाते ठहाकों में
एक मुस्कान तन्हा ....
सतरंगी सा सजा इन्द्रधनुष
ये एक रंग तन्हा .......
यादों - वादों से भरी ये किताब
अंतिम कोरा पन्ना तन्हा .......
बैठ पर्वत के शिखर पर
जीती हूँ एक साँस तन्हा ......... निवेदिता
हर दिल कहीं न कहीं कभी न कभी किसी ना किसी मोड़ पर तन्हा होता ही है। क्योंकि शायद इस ज़िन्दगी को थोडा बहुत समझ कर जीने के लिए तन्हाई भी ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंहूँ, सबके बीच अकेलापन । यह भी एक सच है , बढ़िया लिखा आपने
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10 - 12 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2186 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सच्ची और सुंदर प्रस्तुति। ये दिल भटके कहाँ कहाँ तनहा।
जवाब देंहटाएंसब तन्हा...बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअकेलेपन के कारण ही, साथ के सुख याद रहते हैं ! मंगलकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंपयारी-सी कविता ।
जवाब देंहटाएंतन्हा होने पर ही स्व का अहसास होता है ।
एकला चोलो रे । यही एक मार्ग है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं