चाहते तो तुम्हारी
बहुत सी हैं और
पूरी भी की हैं मैंने
अब …....
आज ........
एक बहुत ही
छोटी सी चाहत ने
अपनी अधमुंदी सी
पलकें खोल ली है
तुम्हे रास्तों की
सफाई बहुत भाती है
न हो कहीं कोई कंकड़
न ही राह थामने को
सामने आये कोइ कंटक
तुम्हारे इस अवरोधरहित
सहज राजपथ के लिए
मैं एक बार फिर से
जानकी की तरह
धरती की गोद में
समा जाने को तत्पर हूँ
बस तुम मुझे एक
इकलौता वरदान दे दो
मेरी ज़िंदगी गुज़रे
अनवरत हिचकियों में
और इन हिचकियों का
इकलौता कारण हो
तुम्हारी यादों में
सिर्फ और सिर्फ
मेरा ही बसेरा हो …… निवेदिता
अत्यंत मधुर एवं भावपूर्ण ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेम भाव की अभिव्यक्ति ....!
जवाब देंहटाएंअभी नहीं, अभी आपके राम को आपकी आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंसमर्पण का शिखर!
जवाब देंहटाएंक्या ख्वाहिश है............बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रेम का चरम समर्पण .. भावमय ...
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी की बात से सहमत हूँ दी...:)
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक .
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