बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

रिश्तों की गहराती दलदल ......


ये दलदल भी 
अजीब सी ही 
साँसें भरती है 
अनजाने ही 
बढ़ाते कदमों को 
थाम कर 
अपने में ही 
समा लेती हैं  .... 

ये रिश्ते भी 
अनोखापन लिए 
दम तोड़ते 
कदमों को 
जीवंत हो 
आगे ही आगे 
बढ़ते जाने को 
सहला देते हैं  ….. 

इस दलदल से 
अंकुराए रिश्ते 
मारीचिका बन 
मन की 
अनदेखी कंदराओं की 
अतल गहराईओं में 
उलझी सेवार से 
समा जाते हैं  .......


सच में
बड़ी ही
अजीब सी है
ये रिश्तों की
गहराती दलदल

छोड़ो भी ,
इस से हमें क्या
आओ ! चलो 

इस में डूब कर
कहीं दूर मिल जायें …… निवेदिता


   अर्चना दी ने मेरी इस भावानुभूति को अपनी आवाज़ दी है ,साथ में उनकी भी भावानुभूति भी ...... शुक्रिया दी :)

12 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों की कॉम्प्लेक्स बनावट को इस कविता की सहज बुनावट ने और भी अलग से प्रस्तुत किया है!! बहुत अच्छा है!! रिश्ते दलदल में न फँसे, बल्कि मानसरोवर सा विस्तार, शांति और शीतलता पाएँ!!

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  2. रिश्तों की डोरी ऐसी ही है ....कभी उलझती कभी सुलझती

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  3. बहुत प्यारी कविता है निवेदिता... अब डोर है, तो उलझना-सुलझना तो लगा ही रहता है न डोर का :)

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  4. ये रिस्तों की डोरी है जिसमे गाँठे भी हैं और उन्हे खोलने का भरोषा भी अच्छी कविता बधाई

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  5. रिश्ते दलदल की तरह देखें जा सकते हैं, पर डूबकर मरना नहीं, जीना होता है।

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  6. रिश्ते बनाओ तो अनजाने ही बँधे चले जाते हैं .... और इलास्टिक की तरह कभी पास तो कभी दूर होकर भी जुड़े रहते हैं ..... अब दलदल ही सही ..डुबेंगे चलो मिलने के लिए ...ये भी सही ......

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  7. सच में
    बड़ी ही
    अजीब सी है
    ये रिश्तों की
    गहराती दलदल
    छोड़ो भी ,
    इस से हमें क्या
    आओ ! चलो
    इस में डूब कर
    कहीं दूर मिल जायें

    सुंदर पंक्तियाँ...

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  8. यह बंधन तो प्यार का बंधन है जन्मों का संगम है ....:)

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  9. रिश्‍तों का बंधन भी
    अनोखा बंधन है जो बिना बांधे भी बांधकर रखता है
    ............ ये रिश्तों की
    गहराती दलदल
    छोड़ो भी ,
    इस से हमें क्या
    आओ ! चलो
    इस में डूब कर
    कहीं दूर मिल जायें ……बहुत खूब लिखा है आपने
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. रिश्‍तों का बंधन भी
    अनोखा बंधन है जो बिना बांधे भी बांधकर रखता है
    ............ ये रिश्तों की
    गहराती दलदल
    छोड़ो भी ,
    इस से हमें क्या
    आओ ! चलो
    इस में डूब कर
    कहीं दूर मिल जायें ……बहुत खूब लिखा है आपने
    सादर

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