लघुकथा : घर का पता
अन्विता को उदास देख माँ दुलराते हुए समझाने लगी ,"क्यों परेशान होती हो बेटे ।शादी होने से तुम्हारा ये घर छूट नहीं रहा बल्कि एक और घर मिल रहा है । जब जहाँ मन हो वहॉं रहना ।फिर कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा ।"
अन्विता जैसे अपनी उलझन से उबर चुकी थी ,बोल पड़ी ,"माँ घर तो नहीं ही छूटेगा शादी से पर अंतर ये हो जाएगा कि मेरे इस घर का पता बिक जाएगा । जिस शादी में घर बिक जाए वो सुख नहीं ला सकती । हम शादी के खर्चे अपने बजट में ही करेंगे । किसी की झूठी शान बढ़ानेवाली शादी मुझे स्वीकार्य नहीं ।"
अन्विता जैसे इतना कहते कहते आत्ममंथन से निकल बोलती गयी ,"आप जहाँ भी चाहे मेरी शादी कर दीजिये बस मेरे इस घर के पते को मत बिकने दीजिये ।" ..... निवेदिता
अन्विता को उदास देख माँ दुलराते हुए समझाने लगी ,"क्यों परेशान होती हो बेटे ।शादी होने से तुम्हारा ये घर छूट नहीं रहा बल्कि एक और घर मिल रहा है । जब जहाँ मन हो वहॉं रहना ।फिर कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा ।"
अन्विता जैसे अपनी उलझन से उबर चुकी थी ,बोल पड़ी ,"माँ घर तो नहीं ही छूटेगा शादी से पर अंतर ये हो जाएगा कि मेरे इस घर का पता बिक जाएगा । जिस शादी में घर बिक जाए वो सुख नहीं ला सकती । हम शादी के खर्चे अपने बजट में ही करेंगे । किसी की झूठी शान बढ़ानेवाली शादी मुझे स्वीकार्य नहीं ।"
अन्विता जैसे इतना कहते कहते आत्ममंथन से निकल बोलती गयी ,"आप जहाँ भी चाहे मेरी शादी कर दीजिये बस मेरे इस घर के पते को मत बिकने दीजिये ।" ..... निवेदिता
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-06-2019) को "बोलता है जीवन" (चर्चा अंक- 3357) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सभी मौमिन भाइयों को ईदुलफित्र की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'