मंगलवार, 11 जून 2019

लघुकथा : लक्ष्मण रेखा

लघुकथा : लक्ष्मण रेखा

"क्या होता जा रहा है तुमको ! कुछ बताओ तो ... हम सब परेशान हैं तुम्हारे लिये । कुछ समझ में आ ही नहीं रहा कि तुमको दिक्कत क्या है या तुम चाहती क्या हो ... अरे कुछ बता भी दो । डॉक्टर भी कहते हैं कि बीमारी तन की नहीं मन की है । अब हमारे पास वो सब कुछ है जिसके लिये अच्छे अच्छे लोग तरसते हैं । अपने अपने जीवन मे सुव्यवस्थित प्यार बरसानेवाले बच्चे ,हमारा मान करनेवाली बहुएं ,घर , सम्पत्ति सब तो है हमारे पास । मन का रोग तो  कुछ कमी महसूस करने पर होता है न , पर जब कुछ कमी है ही नहीं तो ये कैसी लक्ष्मण रेखा खींच कर उसके अंदर घुस गई हो । " हताश सा अनिकेत झुंझला रहा था ।

कुछ पलों तक उसको देखते देखते , हठात ही अन्विता हँस पड़ी ," नहीं मुझे कोई दिक्कत नहीं है । मैंने अपनी सब जिम्मेदारियों को पूरा कर दिया है । बच्चे और तुम सब अपने क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके हो । बहुएं भी इस घर को अपना चुकी हैं । अब किसी बात की अनदेखी के लिये मुझे गलत नहीं ठहरा सकते हो । बस अब मैं अपने लिये जी रही हूँ जो तुम सबको असामान्य लग रहा है ।"

एक सुकून भरी साँस ली उसने ,"जानते हो अब मैं लक्ष्मण रेखा के अंदर नहीं रहती , बस उन सबके लिये जरूर ये रेखा खींच दी है जिनकी आदत मुझको अस्वीकार करने और मुझमे कमी निकालने की पड़ गयी है ।"
                                                  ... निवेदिता

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