चाहा था
तुम्हे थोड़ा
कम ही चाहूँ
पर ……
रोक न सकी
खुद को
और तुम
तुमने तो बस
एक भी पल
न लगाया
राह बदलने में
शायद तुम थे
कम चाहत लायक
और हाँ …….
मैं भी थी
कम …… बहुत कम
पीड़ा पाने लायक …….
पर
शायद
ये तो एक उलझन है
दिल और दिमाग के बीच
दिमाग तो
तुमको छोड़
आगे बढ़ जाना चाहता है
पर
ये दिल …
ये तो बस तुम्हे ही
अपनी साँसों में
यादों में बसाना चाहता है ……
- निवेदिता
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
RECENT POST : समझ में आया बापू .
:) di ek behtareen prem rachna...
जवाब देंहटाएंमन के सुंदर भाव... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंइंसान बस दिल के हाथों ही तो मजबूर होता है ... तडपता है उम्र भर प्रेम में ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर भाव...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमन को उलीचकर रख देती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंदिल ......इस दिल के हाथों ही तो मजबूर हैं हम सब।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता।
दिल ......इस दिल के हाथों ही तो मजबूर हैं हम सब।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता।
aaah !!! :)
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