शनिवार, 7 सितंबर 2013

आस और प्यास




एक आस हर पल 
थामती हैं साँसें 
इस आस में छुपी  
एक अनबुझी सी 
प्यासी प्यास भी है  
आस की प्यास 
जगाती रहती है 
प्यास की आस
आस और प्यास 
कितनी और कैसी हैं 
सुलझी हुई उलझन
ये उलझन जलाती 
उम्मीदों के दिए
कालिमा से भरे 
अँधियारों के उजाले  
सोचते 
न प्यास की आस 
बुझती  …. 
न आस की प्यास 
भरती  …
सच 
कैसी अजीब सी 
ये प्यासी आस है  ……
                 - निवेदिता 

13 टिप्‍पणियां:

  1. आस की प्यास और प्यास की आस , दिया बाती जैसे कॉम्प्लीमेंट्री लग रहे है .

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  2. न प्यास की आस
    बुझती ….
    न आस की प्यास
    भरती …
    सच
    कैसी अजीब सी
    ये प्यासी आस है
    प्यास और आस में डूबी सुन्दर रचना...

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  3. आशा का दीप जब तक जलता रहे..सब कुछ संभव है. सुन्दर रचना.

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  4. सच...
    और आस की प्यास भर गयी तो जीने का मकसद क्या रहा....

    बहुत प्यारे से भाव...

    सस्नेह
    अनु

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  5. नमस्कार आपकी यह रचना कल रविवार (08-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. प्यास सदा ही कुछ पाते रहने को इंगित करती है।

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  7. सुलझी हुई उलझन
    ये उलझन जलाती
    उम्मीदों के दिए
    कालिमा से भरे
    अँधियारों के उजाले
    सोचते
    न प्यास की आस
    बुझती ….
    न आस की प्यास ... क्या अद्भुत विरोधाभास है ये .. भावपूर्ण रचना

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  8. आस की प्यास पर ही दुनिया कायम है जी ...:-)

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  9. दिल को छू गयी आस की प्यास... बधाई निवेदिता जी

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