एक आस हर पल
थामती हैं साँसें
इस आस में छुपी
एक अनबुझी सी
प्यासी प्यास भी है
आस की प्यास
जगाती रहती है
प्यास की आस
आस और प्यास
कितनी और कैसी हैं
सुलझी हुई उलझन
ये उलझन जलाती
उम्मीदों के दिए
कालिमा से भरे
अँधियारों के उजाले
सोचते
न प्यास की आस
बुझती ….
न आस की प्यास
भरती …
सच
कैसी अजीब सी
ये प्यासी आस है ……
- निवेदिता
आस की प्यास और प्यास की आस , दिया बाती जैसे कॉम्प्लीमेंट्री लग रहे है .
जवाब देंहटाएंन प्यास की आस
जवाब देंहटाएंबुझती ….
न आस की प्यास
भरती …
सच
कैसी अजीब सी
ये प्यासी आस है
प्यास और आस में डूबी सुन्दर रचना...
आशा का दीप जब तक जलता रहे..सब कुछ संभव है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसच...
जवाब देंहटाएंऔर आस की प्यास भर गयी तो जीने का मकसद क्या रहा....
बहुत प्यारे से भाव...
सस्नेह
अनु
नमस्कार आपकी यह रचना कल रविवार (08-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंwaah... :)
जवाब देंहटाएंsach!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,क्या बात है ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : समझ में आया बापू .
प्यास सदा ही कुछ पाते रहने को इंगित करती है।
जवाब देंहटाएंसुलझी हुई उलझन
जवाब देंहटाएंये उलझन जलाती
उम्मीदों के दिए
कालिमा से भरे
अँधियारों के उजाले
सोचते
न प्यास की आस
बुझती ….
न आस की प्यास ... क्या अद्भुत विरोधाभास है ये .. भावपूर्ण रचना
आस की प्यास पर ही दुनिया कायम है जी ...:-)
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी आस की प्यास... बधाई निवेदिता जी
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें
हटाएंhttp://ramaajays.blogspot.com/2013/08/blog-post_15.html