मंगलवार, 24 जनवरी 2012

कैसा मौसम आया .......


धूमिल होते बिन्दुओं ने 
अक्षर का आकार लिया 
अक्षर ने अक्षर से 
ऐसे हाथ मिलाया  
शब्दों का बोलता 
इक संसार बनाया 
जीवंत जज़्बातों ने 
स्वर की झंकार दी 
कैसे मौसम बदला 
पतझड़ जैसा आया 
शब्दों ने स्वर को  
बीच मंझदार छोड़ा 
कभी बोलते थे शब्द 
बातों की ,यादों की 
अनवरत लहराती 
नदिया बहती रहती 
खामोशी की पतवार ने 
स्वर - शब्दों की नाव 
डगमगा डूब जाने दिया 
कैसा मौसम आया ........
                      -निवेदिता 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

ज़िन्दगी तू ऐसे ज़िंदा क्यों है ?


हर साँस बस एक सवाल पूछती है
ज़िन्दगी तू ऐसे ज़िंदा क्यों है ?
क्या साँसों का चलना ही है ज़िन्दगी
हर कदम लडखडाती अटकती
मोच खाए पाँव घसीटती है ज़िन्दगी !
कभी दीमक तो कभी नागफनी
बातों और वादों की फांस लिए
अब तो हर डगर अटकाती ज़िन्दगी !
कभी मान तो कभी थी जरूरत
अब तो हर पल घुटती साँसों में
ज़िन्दगी का कर्ज़ उतारती है ज़िन्दगी !
                                       -निवेदिता 

सोमवार, 9 जनवरी 2012

इस मन को समझ तो लो ....




इस विरल गरल को तरल बना
पान का कैसा अभिमान किया
नीलकंठ का खुद को नाम दिया
विषपान से कंठ ही बनेगा नीला
पर नीलकंठ महादेव बनने को
जटा में गंगा ,मस्तक पर चन्द्र
कलाई और गले में वैसा सर्पहार
ससम्मान धारण करना होगा
मन के इस जग के कालेपन को
अवधूत मलंग सा सजाना होगा
महानता के मौन का अभिनय
कितना अस्वीकार्य अजनबी है
नीलकंठ तो तुम बाद में बनना
पहले इस धरती पर साधारण
आम इंसान बन सहज जी लो
विषपान करना बहुत सहज है
इस जीवन के काँटों से सजे हुए
धतूरे की विषबेल को संवार लो
महादेव का अभिनय आसान है
एक बार साधारण मानव बन
इस मन को समझ तो लो ....
                                  -निवेदिता 

शनिवार, 7 जनवरी 2012

"टोल-टैक्स"


 सडक धुंध का नकाब ओढ़े हुए ,
जैसे ज़िन्दगी ने चलते-चलते
सबकी निगाहों से खुद को छुपा
आते-जाते खुद  को ही काटती
दोराहों और चौराहों में बांटती
गति-अवरोधकों की ठोकरों में
लम्हों के खोये जवाब तलाशती ,
कभी दिखाई देते थे जो फुटपाथ
अब वो भी बिचारे यूं ही बन गये
शिकार अपनों के अतिक्रमण का ..
कभी अचानक मन्दिर उग आया
कहीं नागफनी ने भी जड़ें जमा ली
जीवन के आते-जाते दायित्व
अक्सर याद दिला जातें हैं
"टोल-टैक्स"की  !!!!!!!!!!!!
                        -निवेदिता

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

आस का रीता दामन ......


मन्त्र के जाप सा
तुमने फिर कहा
मैंने तुमको फिर
मुक्त कर दिया ..
हाँ ! मैंने तुम्हे
छोड़ दिया
जीवन नदिया की
धार में ,ऐसे ही
मंझधार में
बने रिश्तों के तार
रेशा-रेशा खोल दिया !
हाँ ! ये सच
मैं भी मानती हूँ
परन्तु इसका कारण
हाँ इसका कारण
कभी जानना चाहोगे ?
सोच कर देखना
शायद समझ जाओ ..
वैसे छोड़ देना तो
बहुत आसान है
कठिन तो थामना है
थाम लेने को तो
पास आना पड़ता है ...
एक बात जानते हो
छोड़ने के लिए भी
पहले बढ़ कर
राहों को थामना
पड़ता है ........
पर क्या सच में तुम
कभी भी ,कहीं भी
यूँ ही छोड़ पाये हो
छोड़ने का अभिनय
करते-करते तुम भी
हर श्वांस आस का
रीता दामन थामते रहे........
                          -निवेदिता 

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

चाहत ........




हाथों की 
लकीर बनाओ 
या अपनी 
किस्मत की रेखा 
बस रखना प्रिय 
अपने हथेली की 
सहज छाँव में !




चाहे जो बनो 
सुलझी उलझन 
या फिर 
उलझी उलझन 
पर बनो 
सिर्फ मेरी ही 
मेरी अपनी 
सपनीली उलझन !




शायद चाहत 
कुछ अधिक है 
तुमसे तुमको ही 
चुरा लाने की 
पर अपनी तो  
यही चाहत है 
कुछ यूँ ही हर हद
बेखुदी में तोड़ जाने की !
                -निवेदिता  

रविवार, 1 जनवरी 2012

बारह बज भी गये ........:)

      
           न जाने कितने नन्हे-नन्हे लहराते ,थिरकते ,झूमते अपनी ही धुन में मस्त छोटे-छोटे लम्हों की अटूट श्रृंखला बनती है ,तब जा कर कहीं समय का एक अंश हम देख पाते हैं | समय के हर पहलू को संजोये रखने की चाह ,कभी कुछ पलों को उत्सव का रूप दे देती है तो कुछ को मायूसी का और ऐसे ही मायूसी भरे लम्हों को बारह बज गये होने की पदवी दी जाती है | पर इसके विपरीत कभी-कभी इतनी बेचैनी से हमको बारह बजने का इंतज़ार भी रहता है लगता है कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन होने वाला है | जी हाँ ! जैसे ही साल का बारहवाँ महीना कैलेंडर का मुखपृष्ठ बन जाता है ,सब नये साल के आगमन में पलक-पाँवड़े बिछाए साल की अंतिम रात्रि के बारह बजने का इंतज़ार इतनी बेसब्री से करने लगते हैं कि लगता है सच में सबकी मुराद पूरी करने के लिए इस जाते हुए साल के बारह बज ही जाएँ ....:)
             देखा आपने बातों-ही-बातों में इस वर्ष के बारह बज भी गये और वर्ष २०१२ अर्थात एक और बारह शुरू भी हो गया ......... :)  नया साल अपनी पूरी आशाओं और उम्मीदों भरी रौनक के साथ आ गया ...... आप सबको भी नया साल बहुत-बहुत मंगलकारी हो !
             हर साल हम कोई-न-कोई वादा खुद से ही करते हैं और पूरा करने का प्रयास भी ईमानदारी से करते हैं | इस बार आप सबने क्या सोचा है .......मै तो कभी भी कोई ऐसा प्रयास नहीं करती ,परन्तु इस बार सोचा है कि अब बीत चुके दिनों का किसी भी संतुष्टि अथवा असंतुष्टि के आधार पर आकलन नहीं करूंगी ,बस मुझमें जो मेरा विशुद्ध "मैं" है वही बन के ज़िन्दगी का आनंद लूंगी !
              एक बार फिरसे आप सबको नये साल की शुभकामनायें ..............
                                                                                   -निवेदिता