गुरुवार, 5 जनवरी 2012

आस का रीता दामन ......


मन्त्र के जाप सा
तुमने फिर कहा
मैंने तुमको फिर
मुक्त कर दिया ..
हाँ ! मैंने तुम्हे
छोड़ दिया
जीवन नदिया की
धार में ,ऐसे ही
मंझधार में
बने रिश्तों के तार
रेशा-रेशा खोल दिया !
हाँ ! ये सच
मैं भी मानती हूँ
परन्तु इसका कारण
हाँ इसका कारण
कभी जानना चाहोगे ?
सोच कर देखना
शायद समझ जाओ ..
वैसे छोड़ देना तो
बहुत आसान है
कठिन तो थामना है
थाम लेने को तो
पास आना पड़ता है ...
एक बात जानते हो
छोड़ने के लिए भी
पहले बढ़ कर
राहों को थामना
पड़ता है ........
पर क्या सच में तुम
कभी भी ,कहीं भी
यूँ ही छोड़ पाये हो
छोड़ने का अभिनय
करते-करते तुम भी
हर श्वांस आस का
रीता दामन थामते रहे........
                          -निवेदिता 

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर..
    अच्छी भावाव्यक्ति निवेदिता जी...

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  2. भावमय करते शब्‍दों का संयोजन ...।

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  3. विपरीतता का आकर्षण.......सुन्दर पोस्ट|

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बेहतरीन...........
    http://jeevanvichar.blogspot.com

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  5. बहुत सार्थक प्रस्तुति, आभार|

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  6. औरों को मुक्त करते करते स्वयं मुक्ति पा ली..

    जवाब देंहटाएं
  7. वैसे छोड़ देना तो
    बहुत आसान है
    कठिन तो थामना है
    बहुत सही बात कही .....
    मेरा ब्लॉग पढने और जुड़ने के लिए क्लिक करें.
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  8. वैसे छोड़ देना तो
    बहुत आसान है
    कठिन तो थामना है

    सुन्दर रचना....
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर प्रस्तुति.....
    इंडिया दर्पण की ओर से नववर्ष की शुभकामनाएँ।

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  10. छोड़ने का अभिनय
    करते-करते तुम भी
    हर श्वांस आस का
    रीता दामन थामते रहे........

    ...बहुत खूब! बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  11. छोड़ने का अभिनय ! क्या बात है! :)

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