सडक धुंध का नकाब ओढ़े हुए ,
जैसे ज़िन्दगी ने चलते-चलते
सबकी निगाहों से खुद को छुपा
आते-जाते खुद को ही काटती
दोराहों और चौराहों में बांटती
गति-अवरोधकों की ठोकरों में
लम्हों के खोये जवाब तलाशती ,
कभी दिखाई देते थे जो फुटपाथ
अब वो भी बिचारे यूं ही बन गये
शिकार अपनों के अतिक्रमण का ..
कभी अचानक मन्दिर उग आया
कहीं नागफनी ने भी जड़ें जमा ली
जीवन के आते-जाते दायित्व
अक्सर याद दिला जातें हैं
"टोल-टैक्स"की !!!!!!!!!!!!
-निवेदिता
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
जवाब देंहटाएंयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंachchi abhvaykti.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ती
जवाब देंहटाएंजीवन के आते-जाते दायित्व
जवाब देंहटाएंअक्सर याद दिला जातें हैं
"टोल-टैक्स"की !!!!!!!!!!!!
कमाल की बात कही है
्शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
नूतन अंदाज़ कमाल की ..अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
हर घटना अपना टैक्स माँगती है, जीवन ऐसी ही बढ़ती है।
जवाब देंहटाएंशत प्रतिशत सहमत आपसे ...
जवाब देंहटाएंnice one jara hat ke hain.
जवाब देंहटाएंsuperlike
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
वाह! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सा........सुन्दर पोस्ट|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.......
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ख्यलाभिवयक्ति...!
जवाब देंहटाएंजिंदगी जाने अनजाने में इम्तिहान लेती है मगर बेहिसाब सवाल नहीं करती...!
निवेदिता जी,..सुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया रचना,....बेहतरीन,...
जवाब देंहटाएंwelcom to--"काव्यान्जलि"--
मै फालोवर बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,...
जवाब देंहटाएंek jagruk abhivakti.
जवाब देंहटाएंsundar rachna.
जवाब देंहटाएंWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
बड़ी गहरी बात है इस कविता में तो।
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