बुधवार, 5 दिसंबर 2012

" एकांत और अकेलापन "



एक सी लगती 
बातें हो या राहें 
कितनी अलग 
सी हो जाती हैं
एकांत कह लो 
या अकेलापन  
एक से लगते 
पर सच हैं ये 
सर्वथा भिन्न 
एक चाहत है 
दूजा त्रासदी ...
एक रखता 
सृजन क्षमता 
दूजे के पास 
भरी विरक्ति ...
एक की चाहत में 
बंद किये झरोखे 
दूजे से मुक्ति की 
आस लगाये 
टटोली कन्दराएँ !
                     -निवेदिता 

29 टिप्‍पणियां:

  1. सच है....
    एकांत मनचाहा और अकेलापन अनचाहा जो होता है....

    सस्नेह
    अनु

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  2. सत्य कहती सुंदर अभिव्यक्ति ........
    शुभकामनायें.

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  3. एक की चाहत में
    बंद किये झरोखे
    दूजे से मुक्ति की
    आस लगाये
    टटोली कन्दराएँ !
    बहुत खूब ... सच के साथ - साथ चलती हुई ये पंक्तियां भी

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  4. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

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  5. एकांत सृजनात्मक हो सकता है ..... लेकिन अकेलापन ? इंसान को तोड़ देता है .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. एक की चाहत में
    बंद किये झरोखे
    दूजे से मुक्ति की
    आस लगाये
    टटोली कन्दराएँ !
    sach me shabd bol rahe....:)

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  7. एक अनकही कहानी अकेलेपन की ......बहुत खूब

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  8. कुछ गुप्त गुम्फित से भाव -टटोली कंदराओं से अनावृत होते :-)

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  9. वाह! बड़ी खूबसूरती से आपने अंतर परिभाषित किया है।

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  10. सच है सार्थक एवं सुंदर रचना...

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  11. बहुत सुंदर
    निवेदिता जी !

    एक चाहत है
    दूजा त्रासदी ...
    एक रखता
    सृजन क्षमता
    दूजे के पास
    भरी विरक्ति ...

    एकांत और अकेलेपन का बेहतरीन चित्रण !
    कमाल की संवेदनशीलता !
    वाऽह !

    शुभकामनाओं सहित…

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  12. सच है की दोनों में भाव अलग है ... कारण अलग है ...
    इसलिए सृजन भी अलग होता है ऐसे पलों का ...

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